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अधिक सोचने से मन की शांति होती है प्रभावित

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अधिक सोच विचार से इंसान जा सकता है अवसाद में और हो सकती हैं मानसिक समस्याएं ।

नई दिल्ली । विशेषज्ञों की मानें तो बार-बार नकारात्‍मक विचारों के एक ही पैटर्न से गुजरने से ज्‍यादा थका देने वाला काम कुछ नहीं है।अधिक सोचने से न केवल आपके मन की शांति और आराम करने की क्षमता प्रभावित होती है बल्कि कई अध्‍ययनों में साबित किया गया है कि ज्‍यादा समय तक इस तरह से रहने वाला इंसान अवसाद और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से भी घिर जाता है।

जब आप अधिक सोच रहे होते हैं तो आपका दिमाग अथक विचारों का एक चक्रव्‍यूह बुन रहा होता है। ये स्थिति का विश्‍लेषण करता है और इंसान खुद को नाकारात्‍मक रूप में आंकने लगता है। विशेषज्ञ कहते है कि विचार हमेशा आपको एक बड़ी बात की तरह लगते हैं। ये भले ही ज्‍यादा महत्‍वहीन न  हों और भले ही इसे आपके दिमाग ने ही बुना हो लेकिन इन विचारों से बाहर आना आसान नहीं होता है।अधिक सोचने के कई खतरे हैं और इस समस्या से निजात पाना किसी भी इंसान के लिए बेहद जरूरी है।हालांकि यह वास्तव में एक मनोवैज्ञानिक विकार नहीं है।अधिक सोचने से बच्‍चों को पोस्ट-ट्रॉमेटिक  स्ट्रेस डिसऑर्डर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्‍या पैदा हो सकती है।लाइटरूम थेरेपी एंड काउंसलिंग की संस्थापक और मनोवैज्ञानिक गरिमा जुनेजा बताती हैं कि जब आप समय के साथ अधिक सोचते रहते हैं तो क्या होता है और इसका आपके मानसिक  स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। उदासी महसूस करने की शुरुआत हमेशा किसी भी विषय में ज्‍यादा सोचने की आदत से होती हैं।अधिकांश समय हम पिछली घटनाओं के बारे में सोचते रहते है और वर्तमान में हो रही घटनाओं के बारे में चिंतित होते हैं या फिर भविष्य के बारे में अत्यधिक चिंता करते हैं।इन सभी में मुख्य रूप से नकारात्मक भावनाएं शामिल होती हैं, जो लंबे समय तक रहने पर जीवन में निराशा पैदा कर सकती हैं। इस कारण वश  इंसान अवसाद या चिंता से ग्रस्‍त हो सकता है।हमारे व्यवहार या दूसरे व्यक्ति के व्‍यवहार जैसे सामाजिक हालात के बारे में ज्‍यादा सोचने से लोग कठोर निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं।

यह लंबे समय में सामाजिक चिंता पैदा कर सकता है और लोगों से दूरी बना सकता है। जब हम किसी विषय के बारे में ज्‍यादा सोचने लगते हैं, तो ये हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करना शुरू कर देता है। इसका परिणाम ये होता है कि हमें नींद नहीं आती और भूख कम लगने लगती है।यहां तक की आप जो कोई भी काम करते है उसमें अपना पूरा योगदान नहीं दे पाते।असली समस्या तब शुरू होती है जब यह दैनिक कामकाज को प्रभावित करना शुरू कर देती है।