क्यों बढ़े आत्महत्या के मामले उत्तराखंड में?
कोरोना को रोकने के लिए जहां लॉकडाउन ज़रूरी है वहीं लोगों को भी देश हित में लॉकडाउन के साथ अपना ख़्याल रखना भी जरूरी है।
रिपोर्ट: सौरभ सिंह बिष्ट
ख़ास बात:
- लॉकडाउन में बढ़े आत्महत्या के मामले
- लोगों पर हो रहा डिप्रेशन भारी
- प्रदेश में हुई 13 प्रतिशत सुसाइड के मामलों में बढ़ोत्तरी
- देश के साथ खुद का भी ख्याल रखें नागरिक
देहरादून: उत्तराखंड में लॉकडाउन के दौरान सुसाइड के मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। आम दिनों के मुक़ाबले सुसाइड के मामले लॉकडाउन के दौरान बढे हैं।पुलिस का मानना है कि जहाँ एक तरफ इसका कारण नेगेटिविटी है, वहीं पुलिस की तहक़ीकात और जानकारों की राय में जो बात सामने आई है वो ये कि लॉकडाउन में लोगों की ज़िंदगी एकदम से बदल गई है। लोग घरों में क़ैद हो गये जिसके साथ ही डिप्रेशन, चिंता और घरेलू झगड़े सुसाइड के मूल कारण बने हैं।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में पहले कभी सुसाइड ना हुए हों लेकिन अगर हम लॉकडाउन के दौरान इन मामलों पर ग़ौर करें तो ये मामले पहले की अपेक्षा ज़्यादा बढ़े हैं। लॉकडाउन में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक एक महीने के दौरान राज्य में 20 सुसाइड हुए, वहीं 23 अप्रैल से 11 मई तक 18 दिनों के भीतर संख्या 25 पहुंच गई। वहीं लॉकडाउन से पहले उत्तराखंड में जनवरी महीने में केवल 12 सुसाइड हुए। यानी की क़रीब 13 प्रतिशत सुसाइड मामलों में लॉकडाउन के दौरान बढ़ोतरी हुई है।
लॉकडाउन में सामान्य ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई है। ऐसे में लोग ना तो किसी से मिल पा रहे हैं और ना ही अपना दुख-दर्द अपनों के साथ बाँट पा रहे हैं। कोरोना को रोकने के लिए जहां लॉकडाउन ज़रूरी है वहीं लोगों को भी देश हित में लॉकडाउन के साथ अपना ख़्याल रखना भी जरूरी है।