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क्या है उत्तराखंड भू कानून?

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जाने क्या है उत्तराखंड भू कानून?

 


फीचर| साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था, उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए। इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई।

क्या आपने कभी सोचा है केला हमेशा टेढ़ा ही क्यों होता है, सीधा क्यों नहीं? जाननी है वजह तो पढ़ें यह खबर- 

वहीं, प्रदेश में बड़े स्तर पर हो रही कृषि भूमि की खरीद फरोख्त, अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी की शिकायतों पर साल 2002 में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने संज्ञान लेते हुए साल 2003 में ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950’ में कई बंदिशें लगाईं। इसके बाद किसी भी गैर-कृषक बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर हो गई।

इसके बाद साल 2007 में बीजेपी की सरकार आई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने अपने कार्यकाल में पूर्व में घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया। लेकिन यह सीमा शहरों में लागू नहीं होती थी। हालांकि, 2017 में जब दोबारा भाजपा सरकार आई तो इस अधिनियम में संशोधन करते हुए प्रावधान कर दिया गया कि अब औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या फिर उससे कोई भूमि खरीदे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी।

औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू उपयोग अपने आप बदल जाएगा और वह अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा। इसी के साथ गैर कृषि व्यक्ति द्वारा खरीदी गई जमीन की सीमा को भी समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी कहीं भी जमीन खरीद सकता था।

याद हो बीते 1 महीने से सोशल मीडिया पर #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून काफी ट्रेंड कर रहा था। दरअसल, हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड के युवा भी राज्य में भू कानून चाहते हैं।

अब सोशल मीडिया की यह मुहिम जमीनी स्तर पर भी दिखने लगी है। बीते रविवार ही राजधानी देहरादून के कई चौराहों पर युवा इकट्ठा हुए और हाथ में पोस्टर और बैनर लिए सरकार ने कठोर भू कानून की मांग करने लगे।