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उत्तराखंड में पांच साल में छह गुना बढ़ी बेरोजगारी दर, कोरोना काल में टूटे सारे रिकॉर्ड

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हल्द्वानी । उत्तराखंड में पिछले पांच साल में बेरोजगारी दर छह गुना बढ़ गई है। कोरोना काल में तो पूरे रिकॉर्ड टूट गए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ओर से जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। सीएमआईई के मुताबिक 2016-2017 में बेरोजगारी दर 1।61 थी और अब यह 10।99 फीसदी पहुंच गई है। वर्ष 2018-19 तक बेरोजगारी दर बढ़ने के बावजूद सिर्फ 2।79 फीसदी थी। कोरोना से पहले 2019-20 में यह तेजी से बढ़कर 5।32 चली गई। कहा जा रहा है कि राज्य में कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के बाद कामकाज ठप होने और काम के अभाव में घर लौटे प्रवासियों के चलते बेरोजगारी बेकाबू होने लगी। पहली लहर के बाद जैसे-तैसे कामकाज पटरी पर लौट ही रहा था कि कोरोना की दूसरी लहर ने फिर औसत बेरोजगारी दर को दहाई के अंक में पहुंचा दिया है। बेरोजगारी के भयावह आंकड़ों के सामने रोजगार देने के सरकारी प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं।

सीएमआईई के मुताबिक, अप्रैल 2021 से 5 मई 2021 के बीच उत्तराखंड के शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों में 53 हजार प्रवासी उत्तराखंड लौटे हैं। इसमें सर्वाधिक 27।90 फीसदी लोग अल्मोड़ा से हैं। पौड़ी में 17।84 फीसदी, टिहरी में 15।23 फीसदी, हरिद्वार में 0।11 फीसदी, देहरादून में 0।29 फीसदी, यूएसनगर में 0।66 फीसदी प्रवासी घर लौटे हैं। पहली लहर में पिछले साल सितंबर 2020 तक करीब 3।57 लाख प्रवासी उत्तराखंड लौटे थे, इनमें सबसे ज्यादा पौड़ी, टिहरी और अल्मोड़ा  के शामिल थे।

प्रदेश में करीब 40 फीसदी उद्योग-धंधे पूरी तरह चौपट होने की कगार पर हैं। संचालन से जुड़े लोगों ने आशंका जताई है कि आने वाले समय में कोरोना ऐसा ही रहा तो स्थिति और खराब हो जाएगी। कई लोग रोजगार के अभाव में घरों पर बैठे हैं या फिर रोजगार के नए विकल्प तलाश रहे हैं। कोरोनाकाल में लोगों को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री सौर ऊर्जा स्वरोजगार योजना जैसी योजनाओं ने काफी हद तक राहत दी। इसके बेरोजगारों ने अपने कौशल का इस्तेमाल गांव अथवा कस्बों में नए व्यवसाय की शुरुआत कर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाए हैं।