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सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की प्रक्रिया भेदभावपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट

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महिलाओं के सेना में स्थायी कमीशन के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता 'मनमाना' और 'तर्कहीन': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्टनई दिल्ली | भारतीय सेना में महिला अफसरों को स्‍थायी कमीशन देने संबंधी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 250 की सीलिंग को 2010 तक पार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि जिन आंकड़ों को रिकॉर्ड पर रखा गया है, वो केस के बेंचमार्किंग को पूरी तरह से ध्वस्त करते हैं।

देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को सेना में स्थायी कमीशन के लिए लगभग 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि इसके लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता ‘मनमाना’ और ‘तर्कहीन’ है।

शीर्ष कोर्ट ने कहा, ‘हमें यहां यह पहचानना चाहिए कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है।’

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है। अदालत ने कहा, ‘मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है।’

भारतीय सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों के लिए स्थाई आयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना द्वारा अपनाए गए मानकों की कोई न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। इस मामले को लेकर महिला अधिकारियों की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में एक करियर कई ट्रायल के साथ आता है। यह तब और मुश्किल हो जाता है जब समाज महिलाओं पर चाइल्टकेयर और घरेलू काम की जिम्मेदारी डालता है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट भारतीय सेना की 17 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि सेना ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अभी तक महिला अधिकारियों को 50% तक स्थायी आयोग (पीसी) प्रदान नहीं किया है। सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सेना में कंबैट इलाकों को छोड़कर सभी इलाकों में महिलाओं को स्थाई कमान देने के लिए बाध्य है।

महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए एसीआर मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित गौरव को नजरअंदाज किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2020 को दिए अपने फैसले में सभी सेवारत शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन प्रदान करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह अपने पुरुष समकक्षों के साथ सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में स्थायी आयोग में महिलाओं को भी अनुदान दे। जस्टिस डॉo डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पहले मामले की अंतिम सुनवाई 24 फरवरी के लिए तय की थी।

इससे पहले 24 फरवरी की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वह व्यक्तिगत शिकायतों के आधार पर केंद्र सरकार को पिछले साल दिए अपने उस फैसले में बदलाव नहीं कर सकता, जिसमें सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा था, ‘हम ऐसे विविध आवेदनों के आधार पर हमारे फैसले के साथ जरा भी बदलाव नहीं करेंगे, और वो भी लगभग एक साल बाद। हम व्यक्तिगत मामलों को देखते हुए अपने निर्णय में संशोधन नहीं कर सकते। न्यायिक अनुशासन नाम की भी कोई चीज होती है।’

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