December 22, 2024

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विस चुनाव | दूसरे चरण में यूपी की 55 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में

सपा, बसपा और कांग्रेस ने इन 9 जिलों में 78 मुस्लिमों को प्रत्याशी बनाया।
UP विधानसभा चुनाव

विस चुनाव | दूसरे चरण में यूपी की 55 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका मेंलखनऊ । उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए दूसरे चरण की 9 जिलों की 55 सीटों के चुनाव 14 फरवरी (सोमवार) को होना है। इस चरण के लिए भी राजनीतिक दल अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जा सकें। दूसरे चरण की इन 55 सीटों में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहेंगे।

ऐसे में यह जंग सीधे-सीधे बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच होती नजर आ रही है। क्योंकि बीजेपी को अपनी पिछली जीत को दोहराने के लिए मुस्लिम मतदाताओं को इस तरह से देखना होगा ताकि उसका फायदा समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन को ना मिल सके। इस फेज में सपा और रालोद के गठबंधन की भी कडी परीक्षा है, क्योंकि इन 55 सीटों पर आने वाले नतीजे उनके गठबंधन और सरकार बनाने के मंसूबों पर भी बड़ा असर डालेंगे।

विधानसभा चुनाव 2022 की दूसरे फेज की जिन सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका हैं उनमें से सबसे खास मुरादाबाद जहां 50.8 फीसदी मुस्लिम, रामपुर जहां 50.6, सहारनपुर जहां 41.95 और बिजनौर में 43.04 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। अमरोहा में 40.04, संभल में 32.9 और बरेली में 34.54 मुस्लिम मतदाता भी बड़ा उलटफेर करने का माद्दा रखते हैं।

माना ये जा रहा है कि बीजेपी की दूसरे फेस की वोटिंग में रणनीति, मुस्लिम मतदाताओं को तितर-बितर करने की रहने वाली है, जिससे कि वह एकजुट होकर किसी पार्टी के पक्ष में मतदान ना कर सके। बीजेपी अगर ऐसा करने में कामयाब रहती है तो वह न सिर्फ साल 2017 की अपनी जीत को दोहराने में कामयाब होगी बल्कि समाजवादी और आरएलडी के गठबंधन को भी खासा नुकसान पहुंचा पाएगी। इसके अलावा जरूरत इस बात की भी है कि यह मुस्लिम वोट कांग्रेस और दूसरी पार्टियों में भी बंट जाए जिससे बीजेपी अपने जीत के अंतर को बढ़ा सकें। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो इन 9 जिलों की करीब 30 सीटें ऐसी हैं जिन पर सीधे-सीधे बीजेपी को नुकसान हो सकता है।

इन 55 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं के ज्यादा होने की वजह से राजनीतिक पार्टियों ने मुस्लिम कैंडिडेट्स को भी ज्यादा जगह पर टिकट दिया है। चुनाव लड़ रही प्रमुख पार्टियों में अगर देखा जाए तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस में इन 9 जिलों में 78 मुस्लिम कैंडीडेट्स को टिकट दिए हैं। इनमें से 18 कैंडिडेट सपा और रालोद के गठबंधन से हैं, बहुजन समाज पार्टी से 23 कैंडिडेट, कांग्रेस से 21 और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी (एआईएमआईएम) से 15 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इन जिलों में किसी भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया है लेकिन उनके सहयोगी दल की तरफ से एक मुस्लिम कैंडिडेट को टांडा स्वार की सीट से उतारा गया है।

अगर हम पिछले चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने इन 9 जिलों की 55 सीटों में से 38 सीटें जीती थी। जबकि समाजवादी पार्टी के खाते में 15 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें ही मिली थी। बहुजन समाजवादी पार्टी इन जिलों में अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। अब चुनौती भारतीय जनता पार्टी के सामने यह है कि इन सीटों पर अपनी जीत को कायम रखें और पुराने इतिहास को दोहराए। खास बात ये भी है कि इस बार असदुद्दीन ओवैसी के चुनाव के मैदान में बड़े पैमाने पर उतरने के बाद सियासी समीकरण बदले हैं। दूसरे फेज की कुछ सीटों पर ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी भी अच्छा असर डाल सकती है।

दूसरे चरण के लिए जिन सीटों पर प्रमुख मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा गया है उनमें से सहारनपुर की बेहट सीट पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के संयुक्त प्रत्याशी उमर अली, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से रईस मलिक, धामपुर सीट पर समाजवादी पार्टी से नईम उल हसन, बसपा से हाजी कमाल, कांग्रेस से हुसैन अहमद, बढ़ापुर सीट से बसपा के मोहम्मद गाजी, कांठ सीट पर सपा के कमाल अख्तर और कांग्रेस के मोहम्मद महत्वपूर्ण है। दूसरे फेज की रामपुर सीट पर भी मुकाबला कडा है, क्योंकि रामपुर सीट पर आजम खान और नवाब नावेद मियां और स्वार टांडा सीट पर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान और हैदर अली के बीच कड़ी टक्कर है।

वहीं नकुड़ सीट से बहुजन समाज पार्टी के साहिल खान, सहारनपुर देहात से समाजवादी पार्टी के आशु मलिक और देवबंद सीट पर कांग्रेस से राहत खलील शामिल हैं। इन लोगों के बीच कड़ी टक्कर होनी तय मानी जा रही है। इतनी भारी संख्या में मुस्लिम कैंडिडेट के होने की वजह से इतना तय है कि सीट चाहे कोई भी जीते लेकिन जीत हार का फैसला ज्यादातर जगहों पर मुस्लिम मतदाता ही करेंगे।

इस लिहाज से बीजेपी नें शायद पहले से अपनी रणनीति तय कर ली है और नतीजों को लेकर आश्वस्त हैं क्योंकि ना सिर्फ उन्होंने इन 55 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट देने से गुरेज किया है, बल्कि अपनी तरफ से मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए भी कोई विशेष प्रयास नहीं किया है।