करवाचौथ | लौटी बाज़ारों मे रौनक, हर तरफ करवा चौथ की धूम
रुड़की, हरिद्वार | महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला त्यौहार करवाचौथ – इस पर्व पर हर सुहागन अपने सजना के लिये खूब सजना चाहती है, इसीलिए नगर के बाजारों में हर तरफ करवाचौथ की ही धूम नजर आ रही है।
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शरद पूर्णिमा के बाद आने वाला करवा चौथ का ये विशेष व्रत भारत समेत दूर विदेशों में बैठे भारतीय भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार में सुहागिन महिलाएं अपने पति के लिए लम्बी आयु की कामना को लेकर दिन भर बिना खाए और पिए एक कठिन व्रत रखती हैं। इसके बाद शाम को चंद्रमा के दर्शन कर उसे अर्घ्य दे कर और फिर पति के चेहरे को देखकर अपना व्रत तोड़ती हैं।
इस बार करवा चौथ का ये पारम्परिक पर्व 4 नवंबर को पड़ रहा है। इस व्रत के पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक और जानने योग्य है क्योंकि इस व्रत के दिन महिलाएं इस कथा को पढ़ती हैं।
महारानी वीरवती की पढ़ी जाती है कथा
ये कहानी है महारानी वीरवती की है जो अपने भाईयों की अकेली बहन थी। जब करवा माता का ये व्रत आया तो बहन ने बिना खाए पिए दिन भर ये व्रत रखा। इसको देखकर भाईयों ने सोचा कि अगर बहन ने कुछ खाया या पिया नहीं तो वह मर जायेगी तो बहन के प्यार में भाईयों ने एक पीपल के वृक्ष में चंद्रमा का अक्स बना दिया। इसके बाद चंद्रमा के उदय की बात कह वीरवती को चंद्र दर्शन करा उसका व्रत भंग करा दिया। जैसे ही वीरवती ने खाने का पहला कौर मुंह में रखा तो उसके नौकर से उसे पति की मृत्यु का संदेश मिला। इसके बाद वीरवती ने माता करवा की आराधना की जिससे माता प्रकट हुई और उन्होने उसे व्रत भंग होने की बात बताई।
इसके बाद वीरवती ने कठिन तपस्या कर यमराज को प्रसन्न किया और यमराज से वरदान में पति के प्राण मांग लिए। इसके बाद माता की आराधना कर उनसे अपने अपराध की मांफी मांगते हुए प्रार्थना की और कहा कि माता किसी और सुहागिन से ऐसा अपराध ना हो और अंजाने में अगर हो जाये तो वह इतना कठिन तप नहीं कर पाएगी और विधवा हो जायेगी अत: कोई आसान मार्ग बताएं तो माता ने इस व्रत का रास्ता बताया है। जिसके बाद से हर साल सुहागिनें करवा चौथ का चंद्रमा का दर्शन कर अपना व्रत खोलती हैं।
16 श्रृंगार से सजती हैं सुहागिनें और सरगी खा कर रखती हैं निर्जल व्रत
इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हुई दिन भर व्रत रखकर उपवास करती हैं। इस दिन महिलाएं सुबह ही सबसे पहले अपने ससुराल से आई सरगी को खाती है। कहा जाता है कि सरगी सास अपनी बहू के लिए बनाती है। इसको खाकर ही व्रत की शुरूआत की जाती है। इसे खाने के बाद पत्नियां दिनभर बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं। दिन में शिव-पार्वती और कार्तिक देव की पूजा की जाती है। शाम को करवा की देवी की पूजा होती है। रात्रि में चंद्रोदय के समय उगते चंद्रमा को छलनी से देखती हैं। इसके बाद पति का दर्शन करती हैं। पति के हाथ से पानी का घूँट पीकर पत्नी अपना व्रत तोड़ती है।