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अफगानिस्तान में तालिबान राज से कैसे बढ़ेंगी भारत की मुश्किलें

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भारत ने तीन बिलियन डॉलर का निवेश अफगानिस्तान में किया है उसकी सुरक्षा और चाबहार के विस्तार जैसे मसलों पर नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी

नई दिल्ली । अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत के कूटनीतिक गलियारे में गंभीर चिंता नजर आ रही है। सबसे बड़ा सवाल तालिबान के चरित्र को लेकर है। आशंका जताई जा रही है कि तालिबान का पूर्ण शासन भारत सहित पूरे इलाके के लिए आतंकवाद की बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। इसके अलावा भारतीय व्यापार व निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

चीन व पाकिस्तान का तालिबान पर असर रणनीतिक संबंधों के लिहाज से भी भारत के लिए चुनौती पेश कर सकता है। जानकारों का कहना है कि भारत ने तीन बिलियन डॉलर का निवेश अफगानिस्तान में किया है उसकी सुरक्षा और चाबहार के विस्तार जैसे मसलों पर नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी।

पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि हमे पहले ये देखना होगा कि तालिबान किसी समझौते के तहत काबुल पहुंचा है या फिर वे बंदूक और आतंक के दम पर सत्ता हथियाने में सफल हुए हैं। अगर उन्होंने आतंकवाद का सहारा लेकर कब्जा किया है तो भारत सहित यूएन के तमाम देशों को सत्ता खारिज करनी होगी। साथ ही साझा वैकल्पिक योजना तय करना होगा। इसमे वित्तीय मदद पर रोक सहित अन्य विकल्प शामिल हैं।

शशांक ने कहा कि तालिबान के साथ मिलकर चीन और पाकिस्तान क्या रुख अपनाते हैं देखना होगा। लेकिन हमें अपने रणनीतिक हित को देखना होगा। हमें अपने लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी है। फिर इस बात का दबाव बनाना है कि हमारे तैयार किये गए ढांचे नष्ट न हों। शशांक ने इस बात की आशंका जताई कि अगर तालिबान ने पुराने कट्टरपंथ को अपनाया तो कश्मीर के लिए भी आईएसआई की मिलीभगत से नई सुरक्षा चुनौती सामने आ सकती है।

साथ ही पीओके में चीन अफगानिस्तान के जरिये बीआरआई के विस्तार की योजना बना सकता है। भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिहाज से बड़े असर की संभावना भी जानकार जता रहे हैं। चाबहार को लेकर विस्तार की जो योजना भारत ने अफगानिस्तान के जरिये बनाई थी उसपर असर पड़ना तय माना जा रहा है क्योंकि चीन और पाकिस्तान तालिबान की मदद से इसमे रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे।

ग्वादर पोर्ट को ज्यादा तरजीह मिलने की आशंका जताई जा रही है। भारत द्वारा बनाए गए जरांज-डेलाराम हाईवे और सलमा डैम के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट जो निर्माणाधीन हैं उन पर खतरा मंडरा रहा है। सुशांत सरीन का कहना है कितालिबान के आने से दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ने का भी खतरा है और इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है।