November 21, 2024

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लॉकडाउन की छाप राज्य पुष्प ‘बुरांस’ पर भी

लॉक डाउन का असर उत्तराखंड के राज्य पुष्प बुरांस पर भी साफ देखा जा सकता है, जो कि पहाड़ी क्षेत्रों की सुंदरता के साथ-साथ उसकी आर्थिकी और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बना रहता है।

रिपोर्ट: मुकेश बछेती

ख़ास बात:

  • लॉकडाउन का असर राज्य पुष्प ‘बुरांस’ पर भी
  • बुरांस जूस की पैदावार में 50-60 प्रतिशत आई कमी
  • बुरांस -काफ़ल पहाड़ों में आर्थिकी के प्रमुख संसाधन
  • मौसम परिवर्तन का भी विशेष प्रभाव बुरांस पर

पौड़ी: लॉक डाउन का असर उत्तराखंड के राज्य पुष्प बुरांस पर भी साफ देखा जा सकता है, जो कि पहाड़ी क्षेत्रों की सुंदरता के साथ-साथ उसकी आर्थिकी और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बना रहता है। इस बार बुरांस की पैदावार समय से पहले ही हो जाने से इसकी उत्पादक क्षमता में निरंतर कमी दर्ज की जा रही है, मुख्यतः मार्च आखिरी और अप्रैल में खिलने वाला बुरांस पिछले कुछ वर्षों से जनवरी माह में ही खिलने लगा है, जिसका मुख्य कारण जलवायु में आ रहे लगातार परिवर्तन बताए जा रहे हैं।

लगातार बढ़ता गर्मी का स्तर इसके समय से पहले होने का मुख्य कारण बताया जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में बुरांस रोज़गार के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अति लाभकारी माना जाता है। इसके फूलों से जूस बनाकर पहाड़ी क्षेत्र के लोग अपनी आमदनी करते हैं, जबकि आयुर्वेदिक औषधी बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। हृदय संबंधी बीमारियों में इसके जूस का प्रयोग बहुत ही लाभकारी माना जाता है, मगर इस बार लॉक डाउन की वजह से जो ग्रामीण इसको लेने के लिए जंगल का रुख़ करते थे वे लोग लॉक डाउन की वजह से नही जा पाए। यही वजह है कि इस के जूस की पैदावार में भी 50 से 60 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है।

ज़िला फल संरक्षण अधिकारी विनीत नेगी ने बताया कि इस बार लॉक डाउन की वजह से इसके उत्पादन में भारी गिरावट आई है, जिसके कारण पहाड़ों की आर्थिकी और स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी बुरांश का फूल जंगलों से बाहर नही आ पाया। इससे पहले भी पिछले दो-तीन वर्षों में जलवायु परिवर्तन जारी रहने के कारण इसके उत्पादन में गिरावट आई थी।

ज़िला फल संरक्षण अधिकारी ने बताया कि पहाड़ों में पाया जाने वाला काफ़ल भी एक ऐसा फल है जो सर्दी खत्म होने के बाद से ही जंगलों में लगने लगता है। काफ़ल की अपनी विशेषता है कि इसके सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और यह पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है। ये फल भी पहाड़ों में लोगों की आर्थिकी का अहम् साधन है। महिलाएं इस फल को चुनकर मुख्य बाजारों में इन्हें बेचकर कुछ आमदनी भी हासिल करती है। हालांकि अब लगातार हो रहे मौसम परिवर्तन के कारण काफ़ल भी पहाड़ी ज़िन्दगी से दूर होता जा रहा है।

पहाड़ों की पहचान, यहाँ के लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रखने वाले ये फल-फूल-वनस्पति – इनके संरक्षण का काम भी राज्य सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए ताकि आने वाले समय में कहीं ये संसाधन अविलुप्त न हो जाए।