उबलते ज्वालामुखी की विषैली झील में जीवित पाए गए बैक्टीरिया
नई दिल्ली | वैज्ञानिकों ने उबलते हुए ज्वालामुखी की झील में बैक्टीरिया की खोज की है। यह झील इतनी विषैली है कि इसके आसपास से लोगों का निकलना भी मुश्किल है। अब वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इतनी विषम परिस्थिति में भी ये बैक्टीरिया कैसे जिंदा हैं। इससे चांद या मंगल पर जीवन की गुत्थी को भी सुलझाया जा सकता है। विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रहने वाले ये बैक्टीरिया कोस्टारिका में पोआस वॉल्केनो में जीवित पाए गए हैं।
इस तरह की विपरीत परिस्थिति में जीवित रहने वाले जीव को एक्स्ट्रीमोफिलिस कहा जाता है। कोलेराडो विश्वविद्यालय के शोधार्थी अब इस बैक्टीरिया पर अध्ययन कर रहे हैं कि किस तरह यह बैक्टीरिया ऐसे माहौल में जिंदा रह पाता है। दरअसल इन एक्स्ट्रीमोफिलिस के पास व्यापक स्तर पर अनुकूलन की क्षमता होती है, जिसमें यह सल्फर, आयरन और आर्सेनिक का इस्तेमाल करके अपने लिए ऊर्जा का निर्माण करते हैं। शोधार्थियों का कहना है कि इस ज्वालामुखी में जो माहौल है वो ठीक वैसा ही है जैसा मंगल के प्रारंभिक इतिहास का मिलता है। इस तरह से इस लाल ग्रह पर साधारण जिंदगी के निर्माण की उम्मीद की जा सकती है।
पोआस ज्वालामुखी से बने गड्ढे में मौजूद पानी का तापमान उबलते हुए पानी के बराबर होता है और यह पूरी तरह से जहरीले मेटल्स से भरा हुआ है, यह पानी किसी भी तरह के पीने वाले पानी से दस लाख गुना ज्यादा तेजाबी है। साथ ही यहां पर अचानक कभी भी विस्फोट होता रहता है। यह सब बातें इस जगह को किसी भी हाल में, किसी भी जीव के रहने के लायक नहीं रहने देती है। शोधार्थियों का मानना है कि इस गर्म सोते का पानी ठीक वैसा ही है जैसा धरती की उत्पत्ति के दौरान पानी का रहा होगा।
जिसमें से सबसे पहले साधारण जीवन की उत्पत्ति हुई। माना जाता है कि इसी तरह के गर्म सोते वाला माहौल मंगल पर भी पाया जा चुका है। कोलोरेडो विश्वविद्यालय के छात्र जस्टिन वांग का कहना है कि इस झील में कुछ ही प्रकार के जीव मिले हैं, लेकिन इनके पास इस भयानक जहरीली परिस्थितियों से बचने के लिए काफी तरीके थे। उनका मानना है कि जब विस्फोट होते हैं तो यह जीव झील के किनारे रहकर खुद को बचाते हैं। एक्स्ट्रीमोफिलिस में ऐसी परिस्थितियों में खुद को ढाल लेने की कमाल की काबिलियत होती है।