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उत्तराखंड | 120 घंटों से फंसी हैं 40 जिंदगियां,अब तक नहीं मिली राहत की सांस

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मजदूरों को निकालने के लिए हो रहे प्रयासों के तहत मलबे में 24 मीटर खुदाई की गई है। इसके बाद उन्हे भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए चार पाइप लगाए हैं। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि निर्माण स्थलों पर अक्सर कई तरह के खतरे होते हैं, जिनमें मलबा गिरना एक बड़ी चिंता का विषय है।
120 घंटों से फंसी हैं 40 जिंदगियां,अब तक नहीं मिली राहत की सांस

नई दिल्ली । उत्तराखंड की एक टनल में फंसे 40 मजदूर बीते 120 घंटों से जिंदगी और मौत के बीच फंसे हुए हैं। उन्हे निकालने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं आई जिससे राहत महसूस किया जा सके। यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग के एक हिस्से के ढहने से पिछले पांच दिनों से उसके अंदर 40 मजदूर फंसे हुए हैं। सुरंग में फंसे सभी श्रमिक सुरक्षित बताए जा रहे हैं, जिन्हें पाइप के माध्यम से लगातार ऑक्सीजन, पानी, सूखे मेवे सहित अन्य खाद्य सामग्री, बिजली, दवाइयां आदि पहुंचाई जा रही हैं। वहीं अब मलबों के बीच से पाइप डालने के लिए बरमा ड्रिलिंग मशीनें लगाई गई हैं। नॉर्वे और थाईलैंड की विशेष टीमों की भी रेस्क्यू में मदद ली जा रही है। गुरुवार शाम सात बजे तक 21 मीटर तक मशीन से टनल में ड्रिल की जा चुकी है। सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है जिसमें ड्रिलिंग की जानी है।

केंद्रीय मंत्री वी के सिंह ने भरोसा दिलाते हुए कहा कि 12 नवंबर से सिल्कयारा सुरंग के अंदर फंसे 40 मजदूरों को शीघ्र और सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन बचाव अभियान में दो या तीन दिन और लग सकते हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री ने बचाव अभियान की समीक्षा के बाद कहा, यह (निकासी) उससे पहले भी हो सकती है लेकिन ऐसी परिस्थितियों में, हमें दो-तीन दिनों की बाहरी सीमा रखनी चाहिए ताकि अगर कोई बाधा आती है तो हम उससे निपट सकें। हमारी प्राथमिकता है कि वे सुरक्षित रहें। हमारी प्राथमिकता है कि उन्हें जल्द से जल्द निकाला जाए। इसके लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में बनाई जा रही सभी सुरंगों की समीक्षा की जाएगी। 12,000 करोड़ रुपये की चल रही चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना के हिस्से के रूप में पहाड़ी राज्य में कई सुरंगें बनाई जानी हैं। सिल्क्यारा सुरंग, जिसके कुछ हिस्से रविवार की सुबह भूस्खलन के बाद ढह गए, भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा है।

फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के निदेशक, इंटरनल मेडिसिन, डॉ. अजय अग्रवाल ने कहा, लंबे समय तक बंद स्थानों में फंसे रहने के कारण पीड़ितों को घबराहट के दौरे का अनुभव हो सकता है। अधिकारियों ने कहा कि छह बिस्तरों वाली एक अस्थायी स्वास्थ्य सुविधा स्थापित की गई है और फंसे हुए श्रमिकों को निकालने के बाद तत्काल चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए सुरंग के बाहर विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ 10 एम्बुलेंस तैनात की गई हैं।
डॉ. अग्रवाल ने पीटीआई-भाषा को बताया,इसके अलावा, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की कमी से परिवेशीय स्थितियां भी उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं और ठंडे भूमिगत तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहने से संभवतः हाइपोथर्मिया हो सकता है और वे बेहोश हो सकते हैं।

मजदूरों को निकालने के लिए हो रहे प्रयासों के तहत मलबे में 24 मीटर खुदाई की गई है। इसके बाद उन्हे भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए चार पाइप लगाए हैं। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि निर्माण स्थलों पर अक्सर कई तरह के खतरे होते हैं, जिनमें मलबा गिरना एक बड़ी चिंता का विषय है। गिरने वाली वस्तुओं के प्रभाव से फ्रैक्चर और खुले घावों सहित गंभीर चोटें लग सकती हैं। अस्वच्छ स्थितियों के कारण ये चोटें और भी जटिल हो सकती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।