सुमाड़ी में एनआइटी पर हाई कोर्ट के निर्णय से ग्रामीण निराश
पौड़ी: एनआईटी पर उत्तराखण्ड हाईकोर्ट द्वारा दिये गये हालिया निर्णय से सुमाड़ी गांव के ग्रामीणों में निराशा छा गई है। दरअसल पौड़ी जनपद के सुमाड़ी गांव में ही एनआईटी का स्थाई कैंपस वर्ष 2009 से प्रस्तावित है। इस कैंपस के बनने से ग्रामीणों को खासी उम्मीदें थीं।
इन उम्मीदों का दामन थामे गांव के ग्रामीणों ने अपनी भूमि निःशुल्क दान में देकर एनआईटी परिसर बनाये जाने के लिये सरकार को दान दे डाली। ग्रामीणों को ये भी उम्मीद थी कि इस एनआईटी कैंपस के यहां बनने से इस गांव में रिवर्स माईग्रेशन का सिलसिला भी शुरू हो जाता जिससे रोजगार के संसाधन भी ग्रामीणों के लिये खुल जाते।
ये परिसर न बन पाने को सरकार की नाकामी बताते हुए ग्रामीणों का कहना है कि 2009 से अब तक एनआईटी पर एक ईंट तक सरकार नहीं रख पायी। शिलान्यास के आगे इस परिसर की कहानी कभी बढ़ ही नहीं सकी और सिमट गई।
वहीं उच्च न्यायालय में एनआईटी के पूर्व छात्र जसवीर द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय का कहना है कि पूर्व में दी गयी समयावधि में न तो राज्य सरकार इस स्थाई परिसर के लिये संसाधन उपलब्ध करा पाई और न ही केंद्र सरकार सुमाड़ी में प्रस्तावित एनआईटी भवन के लिये धनराशि जुटा सकी।
उच्च न्यायालय ने पूर्व छात्र द्वारा दायर जनहित याचिका पर निर्णय देते हुए भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार के श्रीनगर गढ़वाल के सुमाड़ी में स्थाई कैम्प्स बनाने के निर्णय को निरस्त कर दिया है। साथ ही उच्च न्यायालय ने कहा है कि सुमाड़ी में परिसर बनाने को लेकर सरकार पुनः विचार करे।
एनआईटी का अस्थाई परिसर वर्तमान में श्रीनगर के पॉलिटेक्निक और आईटीआई के भवनों में चल रहा है जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित है। 2018 के अक्टूबर माह में एनआईटी की दो छात्रायें एक तेज़ रफ़्तार गाड़ी से कुचल गयी थीं जिसमें एक छात्रा पूरी तरह से दिव्यांग हो गयी थी।
इसी को लेकर के पूर्व छात्र जसवीर सिंह ने न्यायालय की शरण ली थी और जनहित याचिका के जरिये यह निवेदन किया था कि प्रदेश के पौड़ी जनपद में एनआईटी संस्थान को बनाये जाने के बजाय प्रदेश में ही अन्यत्र स्थानांतरित किया जाये।
एनआईटी मसले पर सरकार के गंभीर न होने से ज़ाहिर है जिन ग्रामीणों ने अपनी ज़मीनें निःशुल्क दान दीं थीं, अब उनको गहरी ठेस पहुंची है।