December 21, 2024

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लेख | टीकाकरण पर ज़ोर देने की जरूरत

इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत है टीकाकरण की मुहिम को प्रोत्साहित करने की।
सिद्धार्थ शंकर

लेखक: सिद्धार्थ शंकरसिद्धार्थ शंकर

भारत में कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों में बीच सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार अब एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन दूसरे देशों को नहीं देगी। घरेलू टीकाकरण पर फोकस करने के लिए यह फैसला किया गया है। देश में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड के नाम से कर रही है।

यह फैसला इसलिए किया गया है क्योंकि देश में रोजाना कई राज्यों में तेजी से मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में आने वाले दिनों में वैक्सीन मांग में और इजाफा हो सकता है। इससे पहले सरकार ने महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण अभियान का दायरा और बढ़ा दिया है। अब एक अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोग कोरोना का टीका लगवा सकेंंगे। टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के लिए यह जरूरी भी था कि इसका दायरा बढ़ाया जाए और ज्यादा से ज्यादा लोग टीका लगवा सकें। अभी तक 45 साल से ऊपर के वही लोग टीका लगवा सकते थे जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी थी और इस कारण उन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा था।

देश में एक बार फिर जिस तेजी से संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है और कोरोना की दूसरी लहर का खतरा सामने है, उसे देखते हुए जितनी जल्दी पूरी आबादी को टीका दिया जा सके, उतना बेहतर होगा और काफी हद तक लोगों को संक्रमित होने से बचाया जा सकेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना को हराने के लिए जरूरी है कि इससे बचाव के उपायों का सख्ती से पालन हो और लोगों को टीका भी लगे। बचाव के उपाय जहां संक्रमण को फैलने से रोकने में सहायक हैं, वहीं टीका व्यक्ति के भीतर संक्रमण के खतरे को कम करने में मददगार है। टीकाकरण कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके शुरू करने के पीछे मकसद यही था कि जिनको टीके की सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें पहले दिया जाए।

स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्करों को इसलिए दिया जाना जरूरी था कि यही लोग अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज में लगे हैं और इसलिए सबसे ज्यादा खतरा भी इन्हें है। टीका नहीं आने से पहले कई चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण की वजह से जान से हाथ भी धोना पड़ा। हालांकि शुरू में टीकाकरण को लेकर लोगों में झिझक और भय भी देखने को मिला, यहां तक कि चिकित्साकर्मी खुद टीका लगवाने से बचते दिखे।

पहली खुराक दबाव में लेने के बाद दूसरी खुराक नहीं लेने के मामले भी सामने आए। इस कारण अभियान की रफ्तार उतनी तेज नहीं हो पाई जितनी कि होनी चाहिए थी। लेकिन अब लोगों में टीकाकरण को लेकर जागरुकता भी आई है और टीके के प्रतिकूूल प्रभावों को लेकर उत्पन्न डर भी कम हुआ है। इसलिए अब ज्यादातर राज्यों में टीकाकरण जोर पकड़ रहा है।

इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत है टीकाकरण की मुहिम को प्रोत्साहित करने की। इसके लिए लोगों को जागरूक करने के अलावा टीकाकरण की सुविधाओं और इसके बेहतर प्रबंधन पर भी ध्यान देना होगा। लोगों को टीका लगवाने के लिए घर से काफी दूर के अस्पतालों में न जाना पड़े, यह विशेष रूप से खयाल रखने की आवश्कता है। कई अस्पतालों में टीकों के रखरखाव का समुचित इंतजाम नहीं होने की वजह से टीके खराब हो जाने की खबरें आईं।

जितने समय में उनका उपयोग हो जाना चाहिए था, वह नहीं हो पाया। यह दुखद स्थिति है। टीकों के रखरखाव का प्रबंधन इस तरह हो कि एक भी टीका बर्बाद न जाए। अभी खतरा यह है कि ज्यादातर राज्यों में लोग मास्क लगाने और सुरक्षित दूरी जैसे जरूरी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, खासतौर से उन राज्यों में तो स्थिति और भयावह है जहां चुनाव प्रचार चल रहा है और चुनावी सभाओं में पहुंचने वाले नेताओं से लेकर सभाओं में आने वाली भीड़ एकदम लापरवाह बनी हुई है। हरिद्वार में लाखों लोग कुंभ में पहुंच रहे हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण ने अगर विस्फोटक रूप ले लिया तो गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। इसलिए देश में जितना जल्दी और तेजी से टीकाकरण होगा, हम खतरे से उतना ही बच सकेंगे।

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