वैक्सीनेशन नहीं होने से खतरे में पड़ी उत्तराखंड की आदिम जनजाति वनरावत
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पिथौरागढ़ । उत्तराखंड की इकलौती आदिम जनजाति वनरावतों की जनंसख्या वर्तमान में सिर्फ 650 है। सदियों से यह जनजाति जंगलों में ही रह रही है। बीते कुछ दशकों में जनजाति के लोगों का समाज के अन्य लोगों से मेलजोल बढ़ा है, लेकिन इनकी आर्थिक स्थिति आज भी बहुत खराब है। कोरोना महामारी ने आदिम जनजाति की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा कर दिया है। इनका वैक्सीनेशन नहीं होने से इस जनजाति पर कोरोना की चपेट में आने का खतरा बना हुआ है।
पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, डीडीहाट और कनालीछीना ब्लॉक में यह आदिम जनजाति रहती है। जिन इलाकों में वनरावत रहते हैं, वे गांव रोड से 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। यही नहीं यहां इंटरनेट भी नहीं है। जिसके चलते वैक्सीनेशन नहीं हो पा रहा है। आदिम जनजाति के लिए काम करने वाली संस्था अर्पण का कहना है कि अभी तक किसी भी वनरावत में कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई दिए हैं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि किसी भी वनरावत की अभी तक जांच नहीं हो पाई है। संस्था ने प्रशासन से सभी वनरावतों के लिए नजदीक वैक्सीनेशन सेंटर बनाने की मांग की है।
आदिम जनजाति के सभी 650 लोग गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं। 96 फीसदी लोगों के पास मोबाइल तक नहीं है। ये लोग जंगलों की लकड़ी से सामान बनाकर अपना पेट पालते हैं। संस्था की खीमा देवी बताती हैं कि वनरावतों को वैक्सीनेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। न ही इनके पास दूर बने वैक्सीनेशन सेंटर जाने के लिए पैसे हैं। सीएमओ डॉ हरीश पंत का कहना है कि वनरावतों के वैक्सीनेशन के लिए कोई अलग से गाइड लाइन नही हैं। ऐसे में जो निर्धारित नियम है उसी के तहत वैक्सीनेशन हो सकता है।