February 23, 2025

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ब्रिटिश कॉल के दौरान ईजाद दो सौ साल पुराना भाँप चलित पंखा

ब्रिटिश कॉल के दौरान ईजाद हुए इस पंखे को आजादी के बाद से मुनासिब पहचान नही मिल पाई। जबकि ये भाँप चलित पंखा विदेशो में भी अपनी खास पहचान रखता है।

रुड़की। रूड़की इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अंग्रेजी शासन काल से अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली शिक्षानगरी रुड़की वर्तमान में भी अपनी प्राचीन पहचान को कायम रखे हुए है। देश के बड़े प्रोधोगिकी संस्थानो में शुमार आईआईटी रुड़की के अलावा दो सौ साल से भी अधिक पुराना एक हुनर रुड़की की पहचान बना हुआ है। रेल के पहले इंजन की तरह ही भांप से चलने वाला पंखा आज भी देश के साथ साथ विदेशो में भी भारतीय हुनर का लोहा मनवा रहा है। इस भाँप चलित पंखे की तकनीक से अरशद मामून की तीन पीढ़ियों की यादें जुड़ी हुई है। प्रधानमंत्री के लोकल फ़ॉर वोकल मुहिम से अगर देखा जाए तो ये भाँप चलित पंखा विदेशो तक मे रुड़की की पहचान को कायम रखे हुए है।

जी हां आवश्यकता को अविष्कार की जनन्नी कहा जाता है। ये भांप चलित पंखा भी इस कहावत का एक सटीक उदाहरण है। करीब दो सौ साल पहले जब ये पंखा वजूद में आया होगा। तो शायद बिजली का किसी ने नाम भी ना सुना हो, मगर आज जब पूरी दुनिया लाइट से जगमगा रही है तो ऐसे समय भी इस भाँप चलित पंखे की चमक कम नही पड़ी। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ये सम्पन्न लोगों की गर्मी दूर भगाने के काम आता था और अब यह अमीर लोगो के घरों की शान बढ़ाता है। बड़े शहरों के रईस लोग शो-पीस के तौर पर इस पंखे को अपने ड्राइंग रूप में रखकर घर की शोभा बढ़ाते है।

रुड़की के रहने वाले अरशद मामून बताते है कि उनके पूर्वजों से ये भाँप चलित पंखा उन्हें मिला है, जिसके बाद इस पंखे को देखकर उन्होंने कुछ ऐसे ही 10 भाँप चलित पंखे के मॉडल तैयार किए है। देशभर के अलावा विदेशो में भी इस पंखे की खासी डिमांड है। अरशद मामून बताते है कि इस एक पंखे से उनका कारोबार शुरू हुआ जो पिछले लंबे अरसे से परिवार के भरणपोषण का जरिया बना हुआ है। अरशद ने बताया ये भाँप चलित पंखा मायानगरी मुंबई के अलावा विदेशो में भी बेहद पसंद किया जाता है, सपन्न लोग इसे शो-पीस के रूप में रखते है।

वहीं बड़े संस्थानों के छात्र मॉडल तैयार कराने से लेकर प्रैक्टिल के लिए अरशद की इस छोटी सी वर्कशॉप में आते है। बचपन से इंजीनियरिंग का हुनर रखने वाले अरशद का कहना है कि बिना इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बिना डिग्री के ये अनुभव उनके पुरखो से उन्हें मिला है। परिवार में शुरुआत से ही इस कारीगरी को किया जाता रहा है। एंटीक पीस के रूप में ऐसे ही कई उपकरण उन्होंने ईजाद किये है। अरशद बताते है कि ये भाँप चलित पंखा जो कैरोसिन से चलता है। पहले पंखे के नीचे वाले हिस्से में तेल डालकर दिए के रूप में जलाया जाता है, इसके बाद पिस्टन की मदद से इसको चलाया जाता है।

दरअसल ब्रिटिश कॉल के दौरान ईजाद हुए इस पंखे को आजादी के बाद से मुनासिब पहचान नही मिल पाई। जबकि ये भाँप चलित पंखा विदेशो में भी अपनी खास पहचान रखता है।