September 8, 2025

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72 घंटे अकेले ही चीनी फौज से लड़ा ये जांबाज, चीन ने भारतीय सेना को भेंट की जसवंत सिंह की प्रतिमा

72 घंटे अकेले लड़ने वाले जसवंत सिंह रावत की प्रतिमा को चीन ने किया भारतीय सेना को भेंट

 

उत्तराखंड| शरीर तो मिट जाता है पर जज्बा हमेशा जिंदा रहता है। यह कहावत 1962 के भारत-चीन युद्ध में अकेले 72 घंटे तक चीनियों से लड़ने वाले महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह रावत पर सटीक बैठती है। वीरभूमि उत्तराखंड के इस वीर सपूत की आज पुण्यतिथि है। भारतीय सेना इस जांबाज को ‘बाबा जसंवत’ के नाम से सम्मान देती है। जिस पोस्ट पर वह शहीद हुए थे, भारत सरकार ने उसे ‘जसवंत गढ़’ नाम दिया है। उनकी याद में गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट के मुख्यालय लैंसडौन में भी ‘जसवंत द्वार’ बनाया गया है।

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को शहीद हुए भले ही 58 वर्ष गुजर चुके हों, लेकिन भारतीय फौज का विश्वास है कि उनकी आत्मा आज भी देश की रक्षा के लिए सक्रिय है। वह सीमा पर सेना की निगरानी करते है और ड्यूटी में जरा भी ढील होने पर जवानों को चौकन्ना कर देतें है। सेना ने जसवंत सिंह की स्मृति में अरुणाचल प्रदेश की नूरानांग पोस्ट पर एक स्मारक का निर्माण किया है, जो जवानों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। यह वही पोस्ट है, जहां जसवंत सिंह ने शहादत दी थी।

पौड़ी जिले के बीरोंखाल ब्लॉक के ग्राम बांड़ि‍यू में जन्मे जसवंत सिंह रावत 19 वर्ष की आयु में 19 अगस्त 1960 को गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए। 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर तैनाती मिली। नवंबर 1962 को चौथी बटालियन की यूनिट को नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए वहां तैनात किया गया। इस बीच चीनी फौज वहां तक पहुंच चुकी थी, जिसका राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अपने दो साथियों लांसनायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह के साथ डटकर मुकाबला किया, लेकिन इस दौरान उनके दोनों साथी शहीद हो गए। युद्ध में तीन अधिकारी, पांच जेसीओ, 148 अन्य पद और सात गैर लड़ाकू सैनिक मारे गए, फिर भी चौथी बटालियन के शेष जवानों ने दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया।

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही पांच एलएमजी (लाइट मशीन गन) पोस्ट से पोजिशन संभाली और लगातार 72 घंटों तक एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक दौड़-दौड़कर गोलीबारी करते रहे। इससे दुश्मन भ्रमित हो गया और उसे लगा कि सभी पोस्ट पर सैनिक मौजूद हैं, लेकिन जब उसे हकीकत मालूम पड़ी तो तब तक वह अपने 300 सैनिक खो चुका था।राइफलमैन जसवंत सिंह की याद में बने स्मारक पर आज भी सेना के जवान और अधिकारी बाबा को सैल्यूट करने के बाद ही आगे बढ़ते हैं। इस स्मारक में आज भी बाबा के रात्रि में बिस्तर लगाया जाता है। साथ ही खाने की थाली सजती है। कहते हैं कि बाबा के लिए लगा बिस्तर कई बार सुबह खुला हुआ मिलता है।

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने जिस तरह युद्ध में अदम्य साहस एवं वीरता का परिचय दिया, उसे देख चीनी सैनिक भी भौचक्के रह गए। उन्होंने राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की पार्थिव देह को सलामी देकर उनकी एक कांसे की प्रतिमा भी भारतीय सेना को भेंट की।

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