उत्तराखंड में दिखेगा ‘वोकल फॉर लोकल’ का असर, ‘गंगा भोग’ से गंगोत्री से गंगासागर तक मिलेगी आर्थिकी को संजीवनी

देवभूमि उत्तराखंड के गंगोत्री से निकलकर गंगासागर तक का सफर तय करने वाली राष्ट्रीय नदी गंगा हमेशा से देश और विश्व के लिए आस्था व आर्थिकी का केंद्र रही है। आस्था और आर्थिकी के इसी संगम को अब फिर से नए कलेवर के साथ वृहद आकार देने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को) के सहयोग से ‘गंगा भोग’ की शुरुआत की है।
इस पहल में समाहित किए गए हैं पांच ‘म’, यानी मां गंगा, मंदिर, महिला, मधु-मोटा अनाज और मिट्टी। प्रयास यह है कि गंगा जिन राज्यों से होकर गुजरती है, वहां उससे लगे मंदिरों में स्थानीय उत्पाद प्रसाद का हिस्सा बनाए जाएं। इस पहल में गंगा से जुड़े सभी मंदिरों में एक-एक लड्डू अथवा अन्य कोई स्थानीय उत्पाद प्रसाद के रूप में शामिल करने पर जोर है। इससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वोकल फार लोकल नारे को धरातल पर मूर्त रूप देने में भी मदद मिलेगी।
पांच ‘म’ और ‘गंगा भोग’:
राष्ट्रीय नदी गंगा की स्वच्छता व निर्मलता के लिए केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत नमामि गंगे परियोजना संचालित की जा रही है। मिशन के महानिदेशक जी अशोक कुमार बताते हैं कि पूर्व में हुई मिशन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा स्वच्छता को जोडऩे के साथ ही आर्थिक सेतु बनाने का सुझाव दिया था।
इस कड़ी में अर्थ गंगा कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती, आजीविका विकास समेत अन्य कदम उठाए गए। इसी दौरान बात सामने आई कि हेस्को ने स्थानीय उत्पादों को मंदिरों में चढऩे वाले प्रसाद के रूप में विकसित किया है। फिर हेस्को के संस्थापक पद्मभूषण डा अनिल प्रकाश जोशी से विमर्श में गंगा को आस्था व आर्थिकी से जोडऩे के दृष्टिगत मां गंगा, मंदिर, महिला, मधु-मोटा अनाज व मिट्टी का विचार सामने आया। बात निकलकर आई कि यदि इन ‘पांच म’ को गंगा से जोड़ा जाए तो स्थानीय आर्थिकी संवरेगी। यह प्रसाद के रूप में ही संभव थी और इसे नाम दिया गया ‘गंगा भोग’।
प्रथम चरण में गंगा से लगे मंदिर व मठों और उनसे जुड़ी समितियों के मुखियाओं से बातचीत हुई। मंदिरों के आसपास के गांवों व महिला समूहों से संपर्क किया गया, ताकि वहां के अनाज व स्थानीय संसाधनों पर आधारित उत्पाद मंदिरों में प्रसाद के रूप में चल सकें। इसके बाद बीती 22 अप्रेल को ऋषिकेश में गंगा तट से इसकी शुरुआत भी की गई।
सशक्त होंगी स्थानीय महिलाएं:
गंगा भोग में गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा से लगे सभी मंदिरों में स्थानीय महिलाओं द्वारा मधु-मोटा अनाज, मिट्टी समेत अन्य स्थानीय संसाधनों पर आधारित प्रसाद को चलाने में लाने की योजना है। यानी, जिस क्षेत्र में जो स्थानीय उत्पाद हैं, वे वहां प्रसाद का हिस्सा बनेंगे। अभी तक 61 मंदिरों को गंगा भोग प्रसाद से जोड़ा जा चुका है। यदि गंगा से लगे सभी मंदिरों में चौलाई का एक लड्डू भी हिस्सा बनता है तो इसके लिए लाखों लड्डू की जरूरत होगी। साफ है कि इससे महिलाओं को रोजगार मिलने से उनकी आर्थिकी सशक्त होगी।
गंगा भोग से आश्रम भी जुड़ेंगे:
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक जी अशोक कुमार के अनुसार गंगा भोग प्रसाद को गंगा से लगे सभी मंदिरों के अलावा आश्रमों को भी जोड़ा जाएगा। इसके लिए संबधित श्राइन बोर्ड व आश्रमों से बातचीत की जा रही है। यह भी प्रयास किया जाएगा कि मंदिर व आश्रमों में गंगा भोग प्रसाद के स्टाल भी लग सकें। इसके अलावा अन्य माडल अपनाने पर भी विचार चल रहा है।
आस्था व आर्थिकी के साथ गांव के जुड़ाव का उदाहरण बनेगा:
हेस्को के संस्थापक पद्मभूषण डा अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार भारतीय संस्कृति में खेती के उत्पाद देवताओं को अर्पित किए जाते हैं। इसी कड़ी में पहल हुई है कि गंगा से जुड़े महत्वपूर्ण मंदिर किस तरह स्थानीय निवासियों के लिए नए रोजगार के रूप में पनपें। महिलाएं, मंदिर, प्रसाद, अनाज सभी को केंद्र में रखकर गंगा भोग की कल्पना की गई है। यह आने वाले समय में बड़ी जगह बनाएगा। लोग गंगा से सदियों से जुड़े हैं, लेकिन अब गंगा भोग के साथ नए कलेवर में जहां मंदिरों की पहचान स्थापित करेगा, वहीं महिलाओं को रोजगार और खेती-बाड़ी को नए आयाम देगा। आने वाले समय में गंगा भोग आस्था व आर्थिकी के साथ हर गांव के जुड़ाव का उदाहरण बनेगा।