September 3, 2025

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महाकुम्भ ’21 | श्री पंच दशनाम आह्वाहन अखाड़े ने किया भूमि पूजन

अखाड़े द्वारा कुंभ कार्यों को लेकर भूमि पूजन के बाद सभी अखाड़ों में कुंभ मेले की शुरुआत हो जाती है।

 

हरिद्वार | कुंभ मेला जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे कुंभ की तैयारियां पूरी करने के लिए मेला प्रशासन के सभी अखाड़े भी शामिल हो जाते हैं। हर अखाड़े द्वारा कुंभ कार्यों को लेकर भूमि पूजन किया जा रहा है और भूमि पूजन के बाद सभी अखाड़ों में कुंभ मेले की शुरुआत हो जाती है। जितने भी अखाड़ों में कार्य किए जाने होते हैं उनको भूमि पूजन के बाद ही किया जाता है।

रविवार को श्री पंच दशनाम आह्वाहन अखाड़े द्वारा भूमि पूजन किया गया भूमि पूजन में अपर मेला अधिकारी हरवीर सिंह सहित अखाड़े के तमाम साधु-संतों ने भाग लिया और आह्वाहन अखाड़े ने विधिवत रूप से कुंभ मेले की शुरुआत कर दी है।

श्री पंच दशनाम आह्वाहन अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री सत्यगिरी महाराज का कहना है कि भूमि पूजन सनातन परंपरा को मानने वाले लोगों की परंपरा है। चाहे घर का निर्माण कराना हो, कुंभ मेले के कार्य हो या अखाड़ों में निर्माण कराने का कार्य हो – किसी भी प्रकार का कार्य होता है तो उसमें भूमि पूजन जरूर किया जाता है। इसमें सभी देवताओं का आह्वाहन होता है और इसमें अखाड़े के सभी साधु संत हर्षोल्लास के साथ शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि कुंभ को लेकर शासन द्वारा भी हमें सहयोग किया गया है साधु संतों के लिए कुंभ काफी महत्वपूर्ण होता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी को देखते हुए भारत सरकार की गाइडलाइन और अखाड़ा परिषद के निर्देशों का पालन किया जाएगा मगर हमारे द्वारा सभी तैयारियां पूरी की जा रहे हैं जो पिछले कुंभ में हमारे द्वारा की गई थी।

अखाड़े के भूमि पूजन में पहुंचे अपर मिला अधिकारी हरवीर सिंह ने कहा की वो अपेक्षा करते हैं कि साधु संतों के सहयोग से कुंभ सफल हो। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति या सरकार अकेले इतने बड़े आयोजन को सफल नहीं बना सकते। बिन साधुओं के समावेश और उनके प्रतिभाग के, कुम्भ को सफल बनाना मुमकिन नहीं है। उन्होंने कहा कि संत समाज ने अखाड़ों की व्यवस्था के लिए जो पहल की है उसके लिए वो बधाई का पात्र है।

कुंभ मेला अब शुरू होने में कुछ ही समय शेष बचा है। मेला प्रशासन के बाद अब अखाड़े भी अपनी तैयारी को आखरी स्वरूप देने में जुट गए हैं। अब देखना होगा कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच संत समाज और शासन-प्रशासन किस तरह कुम्भ की नैय्या को पार लगाते हैं।

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