चमोली | द्रोणागिरी घाटी में देखे गये दुर्लभ याक
ख़ास बात
- शीतकाल में निचले इलाकों में आते हैं ये चँवर गायों के झुण्ड
- तिब्बती व्यापार की निशानियाँ, इन याकों की संख्या में हुयी वृद्धि
चमोली | हिमालयी इलाकों का ऊंट कहे जाने वाले याक अब उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में फिर तेजी से बढ़ने लगे है जिस से पशुपालन विभाग की याक संरक्षण योजना को मानो पंख लग गये हैं। अब तक द्रोणागिरी घाटी (वह हिमालयी स्थान जहां से हनुमान संजीवनी बूटी लाये थे) के बुग्यालों में रह रहे याक शीतकाल में निचले इलाकों में आने लगे हैं।
ये याक आज कल सूकी के जंगलों में याक विचरण करते देखे जा सकते हैं। क्षेत्र के निवासियों के लिए याकों को फिर से देखना सुखद अनुभव है। चमोली जिले में याकों के सम्वर्धन का कार्य विगत वर्षों से चल रहा है। सिक्किम-भूटान की तरह उत्तराखंड के चमोली जिले के द्रोणगिरी के बुग्यालों में याक का परिक्षेत्र बना है।
पशु चिकित्सा अधिकारी डाक्टर रवीन्द्र राणा बताते हैं कि अभी जिले में 11 याक हैं। जिनमें 7 नर व 4 मादा याक हैं।
आपको बता दें कि ये याक कभी चमोली-पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले इलाकों में खूब पाए जाते थे। सीमा पार तिब्बत से वहां के व्यापारी इन्हीं याक के माध्यम से अपने देश की वस्तुओं को व्यापार के लिये चमोली की सीमा में लाते थे। 1960 के बाद जब भारत-तिब्बत व्यापार बंद हो गया। तो फिर सीमा पार से याक नहीं आये।
पशुपालन विभाग याकों को मानव से मेल जोल के तहत योजना पर भी कार्य कर रहा है ताकि पर्यटक जब यहां आयें तो याक की सवारी का आनन्द ले सकें। वर्ष 2018 में इसका आगाज प्रयोग के तौर पर माणा और बद्रीनाथ के बीच याक की सवारी के तौर पर किया भी गया।