December 21, 2024

Newz Studio

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गरीबी से निकलकर ओलंपिक तक पहुंचे ये खिलाड़ी

कहते है गरीबी मे बहुत ताकत होती है, आज प्रवीण जाधव और सलीमा टेटे ने इसे सही साबित कर दिखाया

तीरंदाजी ने बदली प्रवीण की जिंदगी
ओलंपिक में भाग ले रहे तीरंदाज का ओलंपिकप्रवीण जाधव  सफर आसान नहीं रहा है। उसके सामने शुरुआत में दो ही रास्ते थे या तो अपने पिता के साथ दिहाड़ी मजदूरी करते या बेहतर जिंदगी के लिए खेल का अभ्यास करते। वह अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाने भी लगे थे पर फिर अचानक ही खेलों ने उनकी जिंदगी बदल दी।

जाधव ने कहा, ‘हमारी हालत बहुत खराब थी। मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं।’ एक दिन जाधव के स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल ने उनमें प्रतिभा देखी और एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा।

जाधव ने कहा, ‘विकास सर ने मुझे दौड़ना शुरू करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। मैने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया।’ अहमदनगर के क्रीडा प्रबोधिनी हॉस्टल में वह तीरंदाज बने जब एक अभ्यास के दौरान उन्होंने दस मीटर की दूरी से सभी दस गेंद रिंग के अंदर डाल दी। उसके बाद से ही उनके परिवार के हालात भी सुधर गए।

महिला हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे
टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय टीम में जगह बनाने वाली सिमडेगा की सलीमा टेटे का यहां तक का सफर मुश्किलों से भरा रहा है। बेहद गरीबी से निकलकर इस खिलाड़ी ने राष्ट्रीय टीम तक का सफर तय किया है। सलीमा का पूरा परिवार झारखंड के सिमडेगा जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर बढ़कीछापर गांव में रहता है। बेटी राष्ट्रीय टीम में खेल रही है फिर भी यह परिवार अब तक कच्चे मकान में रहता है। सलीमा के पिता सुल्क्सन टेटे एवं भाई अनमोल टेटे खुद से हल-बैल से खेती करते हैं। मां सुबानी टेटे गृहणी हैं।

सलीमा की चार बहनों में इलिसन, अनिमा, सुमंती एवं महिमा टेटे शामिल हैं। महिमा भी राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता खेल चुकी है। सुमंती मुंबई में रहकर काम करती है। सलीमा का चयन ओलंपिक में होने के बाद उसके परिवार के साथ-साथ गांव के लोग भी गौरवान्वित हैं। जिले से पहली बार किसी महिला खिलाड़ी का ओलंपिक के लिए चयन हुआ है। इससे पहले 1980 में पुरुष वर्ग में सिल्वानुस डुंगडुंग का चयन हुआ था।

सलीमा के पिता ने कहा कि काफी संघर्ष के बाद सलीमा इस मुकाम तक पहुंची है। आरम्भ के दिनों में वह उनके साथ हॉकी मैदान जाती थी। बाद में स्कूल के आवासीय प्रशिक्षण के माध्यम से अपनी प्रतिभा निखारती चली गई। कई अंतरराष्ट्रीय मैचों में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद अब सलीमा को ओलंपिक के लिए अवसर मिला है।
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