December 23, 2024

Newz Studio

सरल और संक्षिप्त

तालिबान के चंगुल से भारतीयों को निकालना नहीं था आसान

नागरिकों के साथ-साथ अफगानों को निकालने के लिए शानदार प्रयास

नई दिल्ली | भारत ने 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अपने दूतावास में राजनयिक, कर्मियों और अन्य भारतीयों नागरिकों के साथ-साथ अफगानों को निकालने के लिए शानदार प्रयास किए हैं। इस पूरी प्रक्रिया में दूतावास से हवाई अड्डे कि लए भारतीय काफिले के लिए सुरक्षित मार्ग के लिए बातचीत के महत्वपूर्ण थे। भारत ने इसके लिए जिनसे संपर्क साधा, उनमें अमेरिकियों के अलावा दो हाई-प्रोफाइल अफगान राजनेता थे जो वर्तमान में तालिबान के साथ सत्ता-साझाकरण वार्ता में भी शामिल हैं।

भारत ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्व उपाध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला से संपर्क साथा। अब्दुल्ला अशरफ गनी की सरकार में राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के अध्यक्ष भी थे। भारतीय राजदूत रुद्रेंद्र टंडन सहित पूरे भारतीय दूतावास को खाली करने का निर्णय गनी सरकार के पतन के तुरंत बाद लिया गया था। काबुल के ग्रीन ज़ोन में रहने वाले सुरक्षा कर्मियों के अपने पोस्टों को छोड़ने के बाद भारत ने यह फैसला किया।

तालिबान के सशस्त्र लड़ाकों ने अफगानिस्तान की राजधानी में अपनी-अपनी चौकियां बना ली थीं। काबुल में तालिबान के अलावा, पाकिस्तान स्थित हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठन शामिल हैं और जो भारत के खिलाफ विशेष दुश्मनी रखते हैं- के मौजूद होने की सूचना मिली थी।

इन्होंने पूरे शहर में अपनी-अपनी चौकियां बना ली थी। इन चौकियों से हवाई अड्डे तक गाड़ी चलाना जोखिम भरा था। 16 अगस्त को, दिल्ली से एयर इंडिया की एक उड़ान ने काबुल के लिए उड़ान भरी। हालांकि लैंडिंग में असमर्थ रही। इसके बाद भारत ने हवाई अड्डे के सैन्य पक्ष के माध्यम से दूतावास के अपने नागरिकों सहित अन्य को निकालने के लिए आइएएफ का एक सी 17 ग्लोबमास्टर विमान भेजा। आपको बता दें कि काबुल एयरपोर्ट अमेरिकी सेना के कंट्रोल में था।

विमान भले ही एयरपोर्ट पर लैंड कर गई, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भारतीयों को सुरक्षित हवाई अड्डे तक पहुंचाने की थी। तालिबान या उससे जुड़े आतंकी सगठन इसमें बाधा नहीं डालें, यह सुनिश्चित करना जरूरी हो गया था। आपको बता दें कि अमेरिका 12 अगस्त से अपने दूतावास को खाली करने के लिए ब्लैक हॉक हेलीकाप्टरों का उपयोग कर रहा था। कुछ यूरोपीय राजनयिक मिशनों की भी सैन्य विमानों तक पहुंच थी, लेकिन भारतीय मिशन के पास अपने हवाई संसाधन नहीं थे।

रूस तालिबान को एक आतंकवादी समूह मानता है। हालांकि तालिबान के कब्जे के बाद भी काबुल में अपने राजनयिक मिशन खुले रखे हैं। रूस ने वार्ता के लिए मास्को में मुल्ला बरादर सहित तालिबान प्रतिनिधियों की मेजबानी की है। तालिबान को अमेरिका के बाद अफगानिस्तान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित भी किया था।