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रुद्रप्रयाग | क्यों पसरा होली पर इन तीन गांवों में सन्नाटा?

372 सालों से यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।

 

रुद्रप्रयाग | देशभर में रंगों का त्यौहार होली धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है लेकिन रुद्रप्रयाग जिले में 3 ऐसे गांव हैं जहां होली का त्यौहार आते ही गांव में सन्नाटा पसर जाता है, इन तीन गांव के 372 साल पुराने इतिहास में कभी भी होली नही मनाई गई, आखिर क्यों नही मनाई जाती इन गावों में होली? देखिये ये विशेष रिपोर्ट।

अबीर गुलाल के साथ होल्यार गांव से लेकर बाजारों में पहुंचने लगे हैं, देश भर में बच्चे जवान बूढे सभी होली के रंगों में रंग रंगीन हो गये हैं, लेकिन रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव इस उत्साह और हलचल से कोसों दूर हैं।

यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। 372 साल पहले जब इन गांव का बसाव हुआ था तब से आज तक इन तीनों गांव में आज तक होली नही मनाई गयी। ऐसा नही है कि इन गाॅव के लोगों को होली मनाना पसन्द नही है, बल्कि होली तो वो मनाना चाहते हैं गांव के बच्चों को ही देख लिजिए, होली न मना पाने का उन्हे हमेशा मलाल रहता है।

रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर बसे क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव की बसागत करीब 371 साल पूर्व की मानी जाती है, यहाॅ के ग्रामीण मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ करीब 371 वर्ष पूर्व यहां आकर बस गए थे।

ये लोग, तब अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति और पूजन सामग्री को भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में स्थापित किया गया, माँ त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है, ग्रामीणों का कहना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं, बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इन गांवों में होली खेली गई तो, तब यहां हैजा फैल गया था और बीमारी से कई लोगों की मौत हो गई थी, तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है।

अब इसे अन्धविश्वास कहें या ग्रामीणों की अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी पर आस्था लेकिन ये एक ऐसा सच है जो इन तीन गांवों के 15 पीढ़ीयाॅ निभाते आ रहे है, और अब नई पीढ़ी भी उसी का अनुसरण कर रही है।

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