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स्पेशल रिपोर्ट: हरिपुर टोंगिया – दर्द भरी गाँव की दास्तां

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ग्रामीणों की माने तो सरकार के आदेश इस गाँव में आते-आते दम तोड़ देते है। फिलहाल ग्रामीणों को पूरा राशन नही मिल रहा है जिसको लेकर ये ग्रामीण अपनी बेबसी पर आंसू बहाने को मजबूर है।

ख़ास बात:

  • ज्वालापुर विधानसभा क्षेत्र में आता है हरिपुर टोंगिया गांव
  • ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है पूरा राशन
  • कई ग्रामीणों पर नहीं हैं राशन कार्ड 
  • ऑनलाइन राशन कार्ड धारकों को ही मिल पा रहा है राशन

भगवानपुर: कोरोना के कहर से पूरी दुनिया सहम सी गयी है। सरकार हर संभव मदद का आश्वासन दिला रही है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर-शहर, कस्बे-कस्बे तक सरकारी मशीनरी गरीब, बे-सहारा, मजबूर लोगों की मदद के लिए काम कर रही है और इस काम की बाकायदा शासन स्तर से लगातार मोनोटिरिंग भी की जा रही है।

लेकिन उत्तराखण्ड का एक गाँव इन तमाम दावों और वादों से कोसों दूर है। सरकार से निकलने वाले आदेशों की आवाज शायद इस गाँव तक नही पहुँचती, इसीलिए ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ लॉकडाउन में मिलने वाली तमाम सुविधाओं से वंचित है।

उत्तराखण्ड के इस गाँव को हरिपुर टोंगिया के नाम से जाना जाता है। इस गाँव के हजारों लोगों को जहाँ ब्रिटिश काल से भारत की पूर्ण नागरिकता का इंतज़ार है, तो वहीं अब लॉकडाउन में सरकारी सुविधाओं के लिए इनकी आंखे तरस रही हैं। सरकार गरीबों तक राशन मुहैया कराने का दम भर रही है लेकिन इस गाँव में राशन के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है। यहाँ मनमाने तरीक़े से राशन का वितरण किया जा रहा है जिसको लेकर ग्रामीण बेहद दुखी है। ग्रामीणों की माने तो सरकार के आदेश इस गाँव में आते-आते दम तोड़ देते है। फिलहाल ग्रामीणों को पूरा राशन नही मिल रहा है जिसको लेकर ये ग्रामीण अपनी बेबसी पर आंसू बहाने को मजबूर है।

विकास से कोसों दूर ये गांव देवभूमि उत्तराखण्ड के ज्वालापुर विधानसभा क्षेत्र के विकास खण्ड भगवानपुर में पड़ता है। यहां पर आज़ादी के बाद से अब तक कुछ नहीं बदला। जैसे ब्रिटिश काल में लोगों को असुविधाओं से दो चार होना पड़ता था वैसे ही आज भी इन लोगों को अपनी ज़िन्दगी गुजारनी पड़ी रही है। इस गाँव के लोग जंगल पर आधारित रहते है और अपना जीवन बसर करते है। लेकिन लॉकडाउन के चलते अब ये जंगल भी नही जा पा रहे, ऐसे में इन लोगो के सामने सबसे बड़ी दिक्कत रोजी-रोटी की उत्पन्न हो गई है। सरकारी सस्ते गल्ले से मिलने वाला राशन भी इन ग्रामीणों की भूख नही मिटा पा रहा है। क्योंकि कई ग्रामीणों के राशन कार्ड नही है और कई राशन कार्ड ऑनलाइन नही है, जबकि शासन स्तर से लगातार कहा जा रहा है कि जो कार्ड ऑनलाइन नही है उन्हें राशन डीलर ऑनलाइन करे और राशन दे, और जिनपर राशन कार्ड नही है उन्हें प्रशासन की ओर से राशन मुहैया कराया जाए, लेकिन ये तमाम दावे और बाते शायद इस गाँव के लिए नही है। क्योंकि इस गाँव में अभी भी राशन उसी पुराने ढर्रे पर बांटा जा रहा है।

इस बाबत जब खाद्य आपूर्ति अधिकारी टी एन शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि हमारे पास सिर्फ ऑनलाइन राशन कार्ड का ही राशन उपलब्ध हुआ है जो की ऑनलाइन राशन कार्ड धारकों को ही वितरित किया जा रहा है । जिन लोगों के राशन कार्ड ऑनलाइन नहीं है या जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उनकी जानकारी ली जा रही है उनकी अलग से लिस्ट बनाकर जब भी सरकार हमें राशन उपलब्ध कराएगी तभी हम उनको राशन उपलब्ध करा देंगे। यानी ये साफ है कि जिन लोगो के राशन कार्ड ऑनलाइन नहीं है या जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उनको खाद्य आपूर्ति विभाग से राशन अभी नहीं मिलेगा।

आपको बता दे इस गाँव के ग्रामवासियों के मुताबिक अब से 90 वर्ष पहले राजाजी नेशनल पार्क के बीच जंगल में जब पौधारोपण का कार्य शुरू हुआ था तब अनेक परिवार के लोगों को पार्क के अधिकारियों ने जमीन देकर उनको यहाँ बसाया था। उस वक्त रोज़ी रोटी के लिए ये लोग जी-जान से पौधारोपण करते थे। पौधे तो बड़े होकर दरख्तों में तब्दील हो गए लेकिन आजादी के 70 वर्ष गुजरने के बाद भी इस गांव में रह रहे लोगों का भाग्य नहीं बदला। आज भी ये गाँव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, गाँव में न्याय पंचायत के चुनाव नही होते इसलिए ये निकाय क्षेत्र से बाहर है, हा लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इन ग्रामीणों को वोट डालने का अधिकार जरूर मिला हुआ है। यही कारण है कि निकायों से दूर ये गाँव वनविभाग के अधीन ही गुजर बसर करता है, इसीलिए इस गाँव के लोग वन अधिकारी को ही अपना प्रधान मानते है।