लक्ष्मण झूला बंद न होता तो हो सकता था मोरबी जैसा हादसा
ऋषिकेश। अगर समय रहते ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला पुल को आवाजाही के लिए बंद नहीं किया गया होता तो यहां भी मोरबी जैसा बड़ा हादसा हो सकता था। दरअसल, तीन अप्रैल 2022 को लक्ष्मण झूला पुल की सपोर्टिंग केबल टूट गई थी। हालांकि इस दौरान कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। वर्ष 2019 में आईआईटी रुड़की ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में पुल आवाजाही के लिए पूरी तरह से अनफिट करार दिया था।
इसके बावजूद स्थानीय लोगों और व्यापारियों के दबाव में 18 दिन बाद पुल को दोबारा खोल दिया गया। 33 महीनों तक पर्यटक और स्थानीय लोग जर्जर पुल से अवाजाही करते रहे। 16 अप्रैल 2022 की रात को पुल को पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
वर्ष 1927 में ब्रिटिश सरकार ने 137 मीटर लंबे नए लक्ष्मण झूला पुल का निर्माण शुरू किया। 1930 में पुल को आवागमन के लिए खोल दिया गया। वर्ष 2019 में पुल 90 साल की अवधि पूरी कर चुका था।
शासन ने पुल की मजबूती का पता लगाने के लिए आईआईटी रुड़की से पुल का सर्वे कराया। आईआईटी रुड़की ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि लक्ष्मण झूला पुल के अधिकांश पार्ट्स और कंपोनेंट जर्जर हो चुके हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि पुल आवागमन के लिए सुरक्षित नहीं है कभी भी टूट सकता है।
इसके बाद तत्कालीन मुख्य सचिव के निर्देश पर 12 जुलाई 2019 में पुल को आवागमन के लिए बंद कर दिया। इसके बाद स्थानीय व्यापारियों और लोगों ने विरोध और धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। विरोध के चलते 18 दिन बाद ही लोक निर्माण विभाग नरेंद्रनगर ने पुल को आवागमन के लिए दोबारा खोल दिया। 33 महीने बाद तीन अप्रैल को अचानक लक्ष्मण झूला पुल की सपोर्टिंग केबल टूट गई।
इस दौरान पर्यटक पुल से अवाजाही कर रहे थे। सपोर्टिंग वायर टूटते ही जब पुल कांपा तो पर्यटकों की जान हलक तक आ गई। लेकिन बूढ़े हो चुके लक्ष्मण झूला पुल ने पर्यटकों के भार को संभाल लिया। लोक निर्माण विभाग ने पुल की मरम्मत का काम शुरू किया। लेकिन जिलाधिकारी ने 16 अप्रैल की रात को दोनों छोरों पर बैरिकेड लगाकर पुल को पर्यटकों की आवाजाही के लिए बंद कर दिया।
अगर पुल को समय रहते बंद न किया जाता तो ऋषिकेश में भी गुजरात के मोरबी झूलापुल टूटने जैसा बड़ा हादसा हो सकता था। अब लक्ष्मण झूला पुल के पास ही बजरंग सेतु का निर्माण किया जा रहा है। पुल का करीब 25 फीसदी निर्माण कार्य पूरा भी हो चुका है।