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GOOD STORIES: पौड़ी की ‘हलधर कौशल्या’ – एक नाम अटूट हौसले का

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हलधर के नाम से प्रसिद्ध कौशल्या देवी एक बड़ा उदाहरण हैं जो अपनी मिट्टी में रहकर ही अपने साथ अन्य लोगों के बेकार समझे जा रहे बंजर खेतों को न केवल सरसब्ज कर रही हैं बल्कि जीवन जीने का उदाहरण भी पेश कर रही हैं।

 

पौड़ी: राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में उपजाऊ कृषिभूमि को छोड़कर पलायन करते लोगों से खाली गांवों में यदि उसी बंजर हो चुकी भूमि को कोई महिला उपजाऊ बनाती दिखे तो ताज्जुब होना लाजिमी है, लेकिन इसका उदाहरण है कौशल्या देवी नाम की वो महिला जो कई गांवों की बंजर खेतों को अपने अकेले दम पर अपने बैलों की जोड़ी और हल से उपजाऊ बनाने पर लगी हैं।

कंधे पर भारी-भरकम हल रखकर खेतों में जाते हुए और खेतों में अपने बैलों की जोड़ी के साथ बंजर खेतों को हल से जोतते हुए स्क्रीन पर दिखती जीवटता की मिसाल है 42 वर्षीय कौशल्या देवी। मजबूत हौसलों वाली कौशल्या देवी के 11 वर्ष पूर्व जब पति गुजरे तो चार बच्चों का जिम्मा भी उनके कंधों पर आ गया। ऐसे वक्त में टूटकर रोने के बजाय उन्होंने हिम्मत जुटाकर अपने 4 बच्चों की परवरिश के लिये कंधे पर हल रख परिवार पालने का बीड़ा उठाया और आज वो कई गांवों के बंजर खेतों में हल लगाकर उन्हें उपजाऊ बना रही हैं। समाज की चुनौतियां उनके सामने भी थीं लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की।

कोट ब्लॉक के कठूड़ गांववासी कौशल्या देवी सुबह 4 बजे घर से निकलती हैं तो रात 9 बजे तक अपने बच्चों के पास घर पहुंच पाती हैं। नियमपसंद कौशल्या देवी की ईमानदारी, जुनून और मेहनत के चलते कई गांवों में ग्रामीण अपने खेतों को जोतने के उन्हें बुलाते तो हैं लेकिन चाहकर भी सब जगह नहीं जा पातीं। अपने बैलों पर हल रख खेतों  को जोतती कौशल्या का ईशारा बैल भी बखूबी समझते हैं। जब वे खेत नहीं जोत रही होती हैं तो गांवों में मजदूरी करती हैं। टूटे-फूटे घर में रहकर कड़ी मेहनतपेशा कौशल्यादेवी की हर कोई सराहना भी करता है।

खास बात यह भी है कि कौशल्यादेवी के काम से लोग इतने खुश हैं कि वो अपने बंजर खेतों में मशीन के बजाय उनके हल से अपने खेत जोतवाना चाहते हैं। थोड़े पैसों के लिए अपनी मिट्टी, गांव के सुकून, साफ हवा और उपजाऊ भूमि को छोड़ मैदानी शहरों में केवल रोजगार के नाम पर पलायन करती युवा पीढ़ी के लिए 15 से 20 हजार रूपये महीना कमाने वाली और हलधर के नाम से प्रसिद्ध कौशल्या देवी एक बड़ा उदाहरण हैं जो अपनी मिट्टी में रहकर ही अपने साथ अन्य लोगों के बेकार समझे जा रहे बंजर खेतों को न केवल सरसब्ज कर रही हैं बल्कि जीवन जीने का उदाहरण भी पेश कर रही हैं।