राम के बाद अब कृष्ण जन्मभूमि पर विवाद….?
लेखक: ओमप्रकाश मेहता
अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की नींव भराई का काम भी पूरा नहीं हुआ है और अब कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) को लेकर विवाद शुरू हो गया है और न्यायालय की चौखट तक पहुंच गया है, अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद था तो कृष्ण जन्म स्थली मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर विवाद है, अपने पक्ष का दावा स्वयं भगवान श्री कृष्ण विराजमान के नाम से ठोंका गया है, कहा जा रहा है कि श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थल की 13.37 एकड़ जमीन पर शाही ईदगाह ट्रस्ट ने अवैध कब्जा कर रखा है, श्री कृष्ण विराजमान ने अपनी जन्मभूमि से अवैध कब्जा हटवा कर उक्त भूमि मंदिर ट्रस्ट को सौंपने की मांग की है तथा कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि इस पूरे परिक्षेत्र को श्री कृष्ण जन्म स्थली क्षेत्र घोषित किया जाए।
मथुरा के सिविल न्यायालय में दायर इस वाद में कहा गया है कि 1968 में शाही ईदगाह ट्रस्ट व श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के बीच हुए समझौते के बाद यह भूखण्ड ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट को दी गई थी, जो गलत था, यह कृष्ण जन्मभूमि की जमीन ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट को नहीं दी जा सकती, मांग की गई है कि न्यायालय इस मामले की जांच कर विवादित स्थल से ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट का कब्जा हटाए और यह भूखण्ड श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपी जाए।
यद्यपि इस विवाद के फैसले पर पूजास्थल कानून 1991 की रूकावट है, किंतु न्यायालय इस पर क्या फैसला लेता है, इसी पर सब की नजर है। पूजा स्थल कानून 1991 पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में 11 जुलाई 1991 को लागू किया गया था, जिसके द्वारा पुरानी रियासतों व मुगलों के शासनकाल के दौरान तोड़े गए मंदिरों-मस्जिदों को लेकर न्यायालय के दरवाजें बंद कर दिए गए थे अकेले हिन्दू ही नहीं जैन, बौद्ध, सिक्ख व ईसाई पूजा स्थलों पर भी यह कानून लागू कर दिया था। इसी कानून के कारण देश के हजारों प्राचीन अराधना स्थलों को पुर्नजीवित नही किया जा सका है। विहिप ने 1984 की अपनी धर्म संसद में राममंदिर व कृष्ण जन्मभूमि के विवादों को लेकर कई प्रस्ताव पारित किए थे।
अब अयोध्या के राममंदिर विवाद के सुलझ जाने के बाद मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद को हवा दी जा रही है, जिससे कि केन्द्र में भाजपा की सरकार के रहते 2024 के पहले कृष्ण जन्मभूमि का विवाद भी न्यायालय द्वारा हल किया जा सके, इसलिए इस मामले को लेकर सरगर्मी बढ़ती ही जा रही है।
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इसी विवाद के सन्दर्भ में एक नया विवाद यह भी उभर कर सामने आ रहा है कि देश के पुराने राजे-रजवाड़ों व रियासतों के सरदारों ने अपने आधिपत्य वाले राज्य के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी सैकड़ों मंदिरों व मस्जिदों का निर्माण कराया था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश की आजादी के बाद जब इन क्षेत्रीय रियासतों को खत्म कर देश के साथ विलीनीकरण किया तो उस समय सरकार ने रियासतों के इन मंदिरों-मस्जिदों को अपने कब्जें में नहीं लिया और इन रियासती पूजा स्थलों पर कई अवैध कब्जें कर लिए गए, देश में ऐसे आज हजारों ऐसे पूजा स्थल है, जिनकी कमाई करोड़ों अरबों की है और इन पर सरकार का कोई कब्जा नहीं है।
उदाहरण स्वरूप मध्यप्रदेश की पूर्व रियासतों के निर्मित करीब 84 मंदिर है जो उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, आंध्रा, राजस्थान, केरल आदि राज्यों में है, जिनकी आज आमदानी करोड़ों में है, अब मध्यप्रदेश सरकार ने इन पूजा स्थलों को अपने कब्जे में लेने के प्रयास शुरू किए है, किंतु इन पूजा स्थलों के मौजूदा संचालकों द्वारा राज्य सरकार के प्रतिनिधि मंडल को कोई तवज्जोह नहीं दी जा रही है, बल्कि उन्हें उल्टे अपमानित किया जा रहा है, अब मध्यप्रदेश सरकार इस मसले पर गंभीरता से चिंतन कर इसे हल करने की दिशा में मंथन कर रही है।
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यह तो अकेले मध्यप्रदेश का मैंने उदाहरण दिया है, किंतु ऐसे देश के प्रत्येक राज्य के मामले है और राज्य सरकारों की अपनी पहल में पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा बनाया गया पूजा स्थल कानून 1991 आड़े आ रहा है, जिसे राज्य सरकारों द्वारा रद्द करने की केन्द्र से मांग की जा रही है। इस दिशा में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उसके प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत भी सक्रिय हो गए है।
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इस तरह देश में पूजा स्थलों को लेकर यह नया विवाद शुरू हो गया है और कृष्ण जन्म स्थल का विवाद तो है ही, क्या अब देश में सत्तारूढ़ भाजपा ”जय श्री राम“ के साथ ”जय श्री कृष्ण“ का भी नारा बुलंद करेगी ?
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