December 21, 2024

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 तिब्बत की भाषा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहा है चीन

चीन के कब्जे वाले तिब्बत में जिन स्कूलों में तिब्बती भाषा में शिक्षा दी जाती है, उन्हें बंद कराया जा रहा है।

नई दिल्ली । चीन तिब्बत की भाषा और संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। चीनी संविधान में साफ लिखा है कि अल्पसंख्यक समूहों को अपनी भाषा के इस्तेमाल और उसके विकास का कानूनी अधिकार है, लेकिन चीन इसकी अवहेलना करते हुए तिब्बत की संस्कृति और भाषा को मिटाने पर तुल गया है। चीन के कब्जे वाले तिब्बत में जिन स्कूलों में तिब्बती भाषा में शिक्षा दी जाती है, उन्हें बंद कराया जा रहा है।

पश्चिमी चीन के सिचुआन प्रांत के अधिकारी तिब्बती भाषा में पढ़ाने वाले निजी तिब्बती स्कूलों को बंद कर रहे हैं और छात्रों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में बच्चों को मंदारिन भाषा में पढ़ाया जाता है। चीन द्वारा स्कूलों को बंद कराने का ये काम साल 2020 के आखिर से ही चल रहा है। चीन अपनी संस्कृति और भाषा को जबरन लोगों पर थोपने में लगा है। जानकारी के मुताबिक सिचुआन के दजाचुखा क्षेत्र में पहले कई निजी स्कूल थे, जहां तिब्बती भाषा और संस्कृति सिखाई जाती थी। इन स्कूलों को बिना किसी कारण के बंद करा दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री के उपयोग में समानता को बढ़ावा देने के नाम पर यह कदम उठाया जा रहा है।

चीन में रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों, शॉपिग मॉल या पोस्टर होर्डिंग सभी जगह अब इंग्लिश के अलावा मंदारिन भाषा में सब कुछ लिखा होता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के 2035 शिक्षा प्लान के तहत प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार के नाम पर चीनी विशेषताओं को जोड़ने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है।

चीनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए चीन के कब्जे वाले मंगोलिया में स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। यह विरोध इनर मंगोलिया ऑटोनोमस रीजन में चीन द्वारा जबरन अपनी नीतियों को थोपने के विरोध में किया जा रहा है। चीन वहां की मूल भाषा को बदल कर मंदारिन को प्राथमिक भाषा के तौर पर लागू कर रहा है। स्कूल में उनकी भाषा की पढ़ाई को कम कर के चीनी भाषा की पढ़ाई को तरजीह दी जा रही है। मंदारिन को अनिवार्य और मंगोलियन भाषा को दूसरे दर्जे में रखा गया है। इसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं।

तीन इलाकों वशिंजियांग, तिब्बत और इनर मंगोलिया में चीन की बर्बरता सबसे भयावह रूप में सामने आई है। चीन के अलग-अलग अल्पसंख्यक समूह और जातियां 80 से ज्यादा अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं। हान, ह्यू और मानचू ही मंदारिन को अपनी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जबकि 12 अन्य समूह जिनमें मंगोलिया, तिब्बती, उइगर, कजाक, किर्गिस, कोरियन, यी, लाहू जिंगपो, शीबो और रूसी अपनी भाषा का इस्तेमाल बोलचाल और लिखने में करते हैं, लेकिन अब सभी को मंदारिन भाषा बोलने और लिखने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

चीन ने इस नीति की शुरुआत 1950 में कर दी थी, जब उसने सभी अल्पसंख्यक ऑटोनोमस रीजन में स्थानीय भाषा के स्कूलों के समानांतर मंदारिन भाषा में पढ़ाए जाने वाले स्कूल खोले थे। इन इलाकों में स्थानीय भाषा, मुख्य और आधिकारिक भाषा थी, लेकिन अब कई ऑटोनोमस रीजन में मंडारिन को प्राइमरी और स्थानीय भाषा को दूसरी भाषा में बदल दिया गया है। चीन के एक डॉक्यूमेंट के मुताबिक दुनिया भर में कुल 7000 अलग अलग तरह की भाषाएं बोली जाती है और इक्कीसवीं शताब्दी के खत्म होते-होते इन भाषाओं की संख्या 4500 रह जाएगी और इसमें एक बड़ा हाथ चीन का होगा।