भाजपा ने जनादेश का किया अपमान, उत्तराखंड राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएः उक्रांद

देहरादून। उत्तराखंड में भाजपानीत सरकार के लगभग साढ़े चार साल में राज्य में विकास की कोई अवधारणा नहीं की, लेकिन तीसरा मुख्यमंत्री देकर जनादेश का मख़ौल उड़ा रही है। भाजपा की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार के आखण्ड में डूबने के कारण बार बार मुख्यमंत्री को बदल रही है। 100 दिन में लोकायुक्त की नियुक्ति, रोजगार के वायदा आदि को लेकर जो वायदे किये थे वो सब धरे के धरे रह गये। उत्तराखंड में पंचायतों के चुनावों के ढाई वर्ष हो चुके हैं अभी तक जिला योजना समितियों का गठन तक नहीं हुआ। अभी तक के सरकार के कार्यकाल व कार्य शैली की बात करें तो माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल सैकड़ो मामलों में संज्ञान लेकर सरकार को निर्देशित किया या फिर उनके निर्णयों पर जवाब तलब किया गया। सरकार को उसका मुखिया या उसकी कैबिनेट चला रही है ये कहीं दिखायी नहीं दिया। लालफीताशाही के इशारों पर सरकार चलती रही।
जनविरोधी नीतियां जिसमें भू कानून को खत्म करना, इंवेस्टरसमिट पर 25 करोड़ खर्च कर 25 रुपये का इन्वेस्ट न होना। सरकारी नौकरियों को फ्रिज करना। व जेई परीक्षा, फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा का परिणाम तथा परीक्षा में हुई गड़बड़ियां, नर्सिंग परीक्षा को बार-बार टालना आदि सरकार की विफलतायें रही हैं। सत्ता के नशे में डूबे भाजपा के विधायकों के चाल चलन व चरित्रों की बखिया उड़ी है। व्याभिचार में द्वाराहाट विधानसभा के विधायक व अब ज्वालापुर हरिद्वार के विधायक सुरेश राठौर में होना भाजपा का चाल चरित्र और चेहरा बयां करता है। खुद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर झारखंड वाला गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष को लेकर लेनदेन सवालिया निशान सरकार के नुमाइंदों पर लगता है। अभी तक तो लगभग सभी कई मंत्रियों के विभागों में भ्रष्टाचार के कई मामले संदेह के घेरे में हैं, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के विभाग भ्रष्टाचार के डूबे रहे। तकनीकी शिक्षा, लोकनिर्माण विभाग व स्वास्थ्य विभागों में भ्रष्टाचार व्याप्त रहा। कोरोना काल में कुंभ में हुई जांचे व कोरोना मृतकों की संख्याओं को लेकर गड़बड़झाला रहा है। उत्तराखंड क्रांति दल राज्यपाल से मांग करता है कि तत्काल प्रभाव से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।