November 22, 2024

Newz Studio

सरल और संक्षिप्त

डांडा लाखौण्ड में सरकारी व नदी की भूमि पर अतिक्रमण पर कार्रवाई

बृहस्पतिवार को हुई इस कारवाई में एसडीएम सदर की मौजूदगी में नपाई कर लगभग एक हेक्टेयर भूमि से अतिक्रमण को जेसीबी की मदद से हटाया गया।

 

देहरादून: राजधानी में सरकारी ज़मीनों को खाली करने की कार्रवाई तेज़ हो चली है। बीते दिनों जहाँ मसूरी में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के तहत 84 परिवारों को विस्थापित किया गया, वहीं आज देहरादून के डांडा लाखौण्ड गांव में सरकारी जमीन को अवैध तरीके से बेचने के मामले में भी कार्रवाई की गई।

देहरादून के सहस्त्रधारा रोड पर डांडा लाखौण्ड क्षेत्र में एक बिल्डर द्वारा लोगों को सरकारी व नदी की ज़मीन में प्लाटिंग कर बेचने का मामला सामने आया है। सरकारी व नदी की ज़मीन की फ़र्ज़ी खरीद-फरोख्त को इतनी सफाई से अंजाम दिया गया कि ज़मीन खरीदने वालों लोगों को इसकी भनक भी नहीं लगी कि जिस भूमि को वो अपनी जमा पूंजी से खरीद रहे हैं वो सरकारी है। इन में से कुछ ज़मीनों पर लोगों ने मकान बना कर रहना भी शुरू कर दिया।

बृहस्पतिवार को हुई इस कारवाई में एसडीएम सदर की मौजूदगी में नपाई कर लगभग एक हेक्टेयर भूमि से अतिक्रमण को जेसीबी की मदद से हटाया गया। साथ ही जिन लोगों ने सरकारी ज़मीन पर मकान बनाये हैं, उनको नोटिस भी दिया गया।

एसडीएम सदर गोपाल राम बिनवाल ने बताया कि अभी और भी ज़मीन है जिनके कागज चैक कर उनकी पैमाइश की जायेगी। इस प्रकरण के बाद से प्रॉपर्टी डीलर द्वारा ठगे गए लोगों का तांता लग गया। पीड़ितों के परिवार फ्रॉड प्रकरण के बाद हताश और परेशान हैं।

जहाँ एक आम नागरिक ज़मीन खरीदते समय रजिस्ट्री और दाखिल-खारिज को ही ज़मीन के वैध होने का प्रमाण मानता है, क्या इसे प्रशासन की लापरवाही नहीं कहा जाएगा, जिसके चलते सरकारी ज़मीन की खरीद फरोख्त होती है, और दाखिल-खारिज में भी वो ज़मीन आ जाती है। अब बड़ा सवाल ये उठता है कि दाखिल ख़ारिज से पहले क्या इन ज़मीनों की पड़ताल की जाती है? और अगर नहीं, तो दाखिल-खारिज का महत्त्व ही क्या रह जाता है? इन ज़मीनों की खरीद-फरोख्त को कानूनी जामा पहनाने के लिए ज़िम्मेदार कौन है, ये बड़ा सवाल है, जो सीधे-सीधे प्रशासन और सरकारी प्रक्रिया पर सवाल दागता है।