September 21, 2024

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एक लाइन का फैक्स… ऐसे खुला था चारा घोटाले का राज

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जानें कैसे एक फैक्स से सामने आया ३०० करोड़ रूपये का चारा घोटाला।
लालू प्रसाद

चारारांची । बिहार और झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे ने बहुचर्चित चारा घोटाले के राज को उजागर करते हुए एक राष्ट्रीय मीडिया हाउस से बातचीत में यह जानकारी दी है कि 1995-96 में बिहार की माली हालत खराब थी, सरकारी कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह भी नहीं मिल रही थी। तब उनकी नियुक्ति वित्त विभाग के प्रमुख सचिव के तौर पर हुई थी। उन्होंने जुलाई 1995 में पद संभाला। चूंकि हमारी स्थिति कर्मचारियों को वेतन देने की भी नहीं थी, तब उनके मन में सवाल आया कि आखिर पैसे जा कहां रहे हैं।

विजय शंकर दूबे ने बताया कि इसके बाद सितंबर-अक्टूबर में हमें पता चला कि पशुपालन विभाग तय बजट से पांच गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। उन्हें गड़बड़ी की आशंका हो गई। अगले साल 19 जनवरी तक वे इस नतीजे पर पहुंचे कि पशुपालन विभाग लगातार बजट से ज्यादा खर्च कर रहा है। यह उनके लिए चौंकाने वाला था।

उन्होंने अपने सहकर्मियों से बात की और सभी जिलाधीशों को एक लाइन का एक फैक्स भेजा, जिसमें लिखा था ‘पशुपालन विभाग के पिछले तीन सालों के खर्च का ब्यौरा पेश करें।’

विजय शंकर दूबे का यही एक लाइन का फैक्स था जिसने चारा घोटाले का खुलासा करने की ओर पहला कदम बढ़ाया। इस एक मैसेज ने जैसे ‘भानुमती का पिटारा’ खोल दिया। 20 जनवरी को उन्होंने अपने एक एडिशनल सेक्रेटरी को रांची भेजा ताकि वह पता लगा सकें कि तीन सालों में ये पैसे कहां खर्च हुए। 21 जनवरी को उन्होंने जानकारी दी कि बजट से ज्यादा खर्च करने के साथ-साथ पैसे निकालने के लिए जो बिल और वाउचर जमा किए गए हैं वे सभी फर्जी हैं।

विजय शंकर दुबे ने उनसे कहा कि सभी बिलों को सीज कर वापस आ जाएं। वह 22 जनवरी को पटना लौट आए सभी दस्तावेजों की छानबीन के बाद उन्होंने अगले दिन राज्य सरकार को एक फाइल भेजी जिसमें इस बात का पूरा विवरण था कि रांची में कैसे एक बड़ा घोटाला हुआ है। उन्होंने संदिग्धों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का सुझाव दिया था। सरकार ने इसे छिपाकर रखा हालांकि सभी जिला कलेक्टरों ने उनके निर्देश के बाद एक्शन लेना शुरू कर दिया था।

27 जनवरी 1996 को उन्होंने चाईबासा जिले के कलेक्टर को निर्देशित किया कि वह चाईबासा ट्रेजरी में रेड मारें। इस रेड में जो सामने आया उसने पूरे देश में खलबली मचा दी। इस रेड के बाद चारा सप्लायर्स और कई कर्मचारी अंडरग्राउंड हो गए। तब भी राज्य सरकार ने उनके सुझाव पर गौर नहीं किया।

उस वक्त लालू यादव तब बिहार के मुख्यमंत्री थे। सरकार ने 30 जनवरी को उनके सुझाव के आधार पर कदम उठाए। 23 से 30 जनवरी के बीच कई चीजें हुईं, लोग समझ सकते हैं कि राजनेताओं ने क्या-क्या करने की कोशिश की होगी। लेकिन इस पूरे सप्ताह दुमका, रांची और अन्य जिलों में रेड से निकलने वाली जानकारी मीडिया में छाई रही।

हालांकि किसी ने उनपर दबाव डालने की कोशिश नहीं की लेकिन सरकार के लोगों ने जांच में देरी करने की कोशिश जरूर की। लेकिन तब तक उनके लिए बहुत देर हो चुकी थी और घोटाला सामने आ चुका था। यह 300 करोड़ से अधिक का घोटाला था। इस साल के अंत में विपक्ष के दबाव में राज्य सरकार ने सीबीआई जांच का सुझाव दिया और 50 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। साल 1997 में 23 जून को सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले का आरोपी बनाया जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।