राम की जगह कृष्ण के भरोसे भाजपा की कमान
यूपी में इस बार भाजपा 300 पार
सपा से खिसकेगा यादव वोट बैंक
नई दिल्ली। राम के सहारे दिल्ली और यूपी की सत्ता का सुख भोग चुकी भाजपा, अब 2022 में कृष्ण के सहारे अपनी वैतरणी पार करने की तैयारी में है। भाजपा उ प्र के चुनाव में 300 पार सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है, यह लक्ष्य कृष्ण के जरिए पूरा किया जाएगा। ऐन चुनाव से पहले यूपी में मथुरा का मुद्दा गरमा गया है। कहा जा रहा है कि 6 दिसंबर यानी अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की बरसी पर ही मथुरा में कार सेवा की तैयारी है। यह काम अब पूरा करेगी नारायणी सेना। मथुरा के बहाने भाजपा यूपी में ध्रुवीकरण का जो राग छेडऩे जा रही है, उसमें महंगाई, बेरोजगारी, अपराध की आवाज थम जाएगी और जनता कृष्ण-कृष्ण करते-करते योगी को वापस सत्ता दिला देगी। यह पूरी कहानी परिकल्पना नहीं है। मथुरा के बहाने भाजपा उत्तर प्रदेश में आश्चर्यजनक रुप से सत्ता में वापसी करेगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के ठीक पहले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा का मुद्दा उठा कर एक नई बहस छेड़ दी है। केशव प्रसाद मौर्य के इस ट्वीट के बाद विपक्ष ने आरोप लगाना शुरू कर दिया है। भाजपा विकास और काम के आधार पर चुनाव में जीत हासिल करने की स्थिति में नहीं है, यही कारण है कि उसने जानबूझ कर मथुरा की बहस छेड़ दी है। मथुरा विवाद खड़ा कर वह वोटों का ध्रुवीकरण कर चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है। विपक्ष का दावा है कि बीजेपी की यह कोशिश कामयाब नहीं होगी। वहीं, भाजपा ने कहा है कि यह उसका लंबे समय से घोषित सांस्कृतिक मुद्दा रहा है। वह समय-समय पर इस मुद्दे पर बहस भी करती रही है, इसलिए इस मुद्दे को उत्तर प्रदेश चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
यह है भाजपा की योजना
दरअसल, भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक समीकरण ठीक करना चाहती है। भाजपा को भी अनुमान है कि किसान आंदोलन के कारण जाटों की नाराजगी उस पर भारी पड़ सकती है। बागपत, मथुरा, आगरा, मेरठ, शामली, सहारनपुर की बेल्ट में जाट-मुस्लिम मतदाताओं के बीच गहरी पैठ रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल का इस चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन है। यह गठबंधन इस चुनाव में भाजपा के लिए भारी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस बेल्ट की 136 सीटों में से भाजपा को 103 सीटों पर सफलता मिली थी।
जाटों की नाराजगी बन रही समस्या
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए मथुरा का मुद्दा एक संवेदनशील मामला हो सकता है। पूरे हिंदू समाज के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मथुरा की कृष्ण जन्म भूमि को विशेष सम्मान प्राप्त है। उ प्र में कृष्ण से जुडाव किसी से छुपा नहीं है। यही कारण है कि भाजपा को लगता है कि यह मुद्दा लोगों के बीच उठाया गया, तो इससे जाटों की नाराजगी कम हो सकती है। यदि जाटों का एक हिस्सा भी उसकी तरफ लौट आता है, तो किसान आंदोलन के कारण होने वाली नाराजगी की काफी हद तक भरपाई हो सकती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिमी यूपी के मोर्चे पर हैं। उन्हें इस क्षेत्र में पार्टी की स्थिति मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है। माना जा रहा है कि वोटों के ध्रुवीकरण के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी अमित शाह की रणनीति के आधार पर ही भाजपा नेताओं ने इस मामले को उछालना शुरू किया है। केशव प्रसाद मौर्य के ट्वीट अयोध्या का काम जारी है, अब काशी-मथुरा की तैयारी है को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है।
मुस्लिमों पर दबाव शुरू
भाजपा कह रही है कि मुस्लिमों की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी अल्लाह उस जगह पर बनी मस्जिद की इबादत स्वीकार नहीं करता, जिसे जोर-जबरदस्ती से या किसी दूसरे धर्म के पवित्र स्थल को तोड़कर बनाया गया हो। उन्होंने कहा कि ऐसे में मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी बड़ा हृदय दिखाते हुए भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा को हिंदू समाज को सौंप देनी चाहिए।
यादव वोट बैंक पर नजर
मथुरा का मुद्दा उठाकर भाजपा की नजर सपा के वोट बैंक पर सोंध लगाने की है। भाजपा इसके जरिए यूपी के यादवों का वोट लेना चाहती है। चूंकि, कृष्ण भी यादव वंश से थे, इसलिए मथुरा का मुद्दा यादवों को भाजपा के पक्ष में एक झटके में ला सकता है। यूपी में यादव समाज की सियासी ताकत ऐसी है, जिसने ठाकुर और ब्राह्मणों के नेतृत्व को यूपी की सत्ता से सिर्फ बेदखल ही नहीं किया बल्कि मंडल आंदोलन के बाद मायावती को छोड़ दें तो सत्ता में लगातार पकड बनाकर अपनी 2022 में अब इसी यादव वोट बैंक पर सेंध लगाके भाजपा अब सपा के सामने हैं।
यूपी में यादव समाज की सियासी ताकत
सूबे में करीब 8 फीसदी यादव समुदाय के वोटर्स हैं, जो ओबीसी समुदाय की जनसंख्या में 20 फीसदी हैं। यादव समाज में मंडल कमीशन के बाद ऐसी गोलबंदी है कि भाजपा और बसपा से कहीं ज्यादा अपनी जाति की पार्टी सपा की तरफ रहा है। उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, अयोध्या, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर और कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है। इन जिलों की करीब 50 विधानसभा सीटें हैं, जहां यादव वोटर अहम भूमिका में हैं।