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लाकडाउन के बाद भी देश में कई जगह बढ़ा वायु प्रदूषण, वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की

वैज्ञानिकों ने की चिंता जाहिर, लाकडाउन के बाद भी देश में कई जगह बढ़ा वायु प्रदूषण

नई दिल्ली। कोरोना के चलते देश भर में लगे लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां बंद होने से वायु प्रदूषण में कमी आई थी और कई शहरों में हवा साफ हुई थी। लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक, सैटलाइट से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि मध्य, पश्चिम और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन के बावजूद वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा।

इस तरह के बढ़ने वाले प्रदूषण को लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है। वैज्ञानिकों ने इसतरह के इलाकों की पहचान कर वहां वायु प्रदषण से होने वाली सांस की बीमारियों के खतरे के बारे में लोगों को चेताया है। वैज्ञानिकों ने रिमोट सेंसिंग तकनीक के द्वारा सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में पाया कि पिछले एक दशक में हवा में प्रदषण का स्तर तेजी से बढ़ा है।

तस्वीरों से साफ दिख रहा हैं कि लॉकडाउन के दौरान वायुमंडल में ओजोन, एनओ2 और कार्बन डाइऑक्साइड गैसें व अन्य जहरीली गैसों की मात्रा में कमी आई थी। लेकिन पश्चिमी, मध्य और उत्तर भारत के कुछ इलाकों और हिमालय के कुछ दूर दराज के इलाकों में लॉकडाउन के दौरान भी हवा में ओजोन और कुछ अन्य जहरीली गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी देखी गई। इन गैसों के हवा में बढ़ने से वहां रहने वाले लोगों को सांस सहित कई अन्य तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

अध्ययन में दिखाया है कि लॉकडाउन के दौरान भी मध्य और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में हवा में मौजूद ओजोन, सीओ2 और एनओ2 की मात्रा में 15 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। वहीं लॉकडाउन के दौरान ऊंचाई वाले इलाकों में हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा में 31 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वहीं हिमायल और कुछ तटीय इलाकों के पास मौजूद शहरों में हवा में प्रदूषण का स्तर लॉकडाउन में भी तेजी से बढ़ा।

वैज्ञानिकों के मुताबिक हवा में ओजोन बढ़ने की मुख्य वजह एनओएक्स और अन्य प्रदूषक गैसों की मात्रा हवा में बढ़ना रहा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस अध्ययन से देश में इस तरह के इलाकों के बारे में पता करने में मदद मिलेगी जहां प्रदूषण के चलते लोगों को स्वास्थ्य का ज्यादा खतरा है।

जमीनी स्तर की ओजोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है, क्योंकि इसका लोगों और पर्यावरण पर खराब असर पड़ता है और इसकी “स्मॉग” या “धुंध” में अहम भूमिका होती है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अनुसार ट्रोपोस्फेरिक या जमीनी स्तर की ओजोन सीधे हवा में उत्सर्जित नहीं होती है, लेकिन यह नाइट्रोजन (एनओएक्स) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के ऑक्साइड के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं के द्वारा बनती है।

यह तब बनती है, जब कार, बिजली संयंत्र, औद्योगिक बॉयलर, रिफाइनरी, रासायनिक संयंत्र और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित प्रदूषक रासायनिक रूप से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रतिक्रिया करते हैं। शहरी वातावरण में खिली धूप खासकर गर्मी के दिनों में ओजोन के खराब स्तर तक पहुंचने की आशंका अधिक रहती है, यह आपके स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकती है, लेकिन यह ठंड के महीनों के दौरान भी सबसे अधिक खराब स्तर तक पहुंच सकती है। ओजोन को हवा द्वारा लंबी दूरी तक पहुंचाया जा सकता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी खराब ओजोन स्तर का अनुभव किया जा सकता है।